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रफ़्तारे ज़िन्दगी

बड़ी तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी की,मुट्ठी से फिसलती चली जा रही है 

उम्र की इस दहलीज़ पर जैसे,ठिठक सी गयी है,सिमट सी गयी है 

बीते हुए पुराने मौसम याद आ रहे हैं,हासिल क्या किया तूने समझा रहे हैं 

ऐ ज़िन्दगी तू ज़रा तो ठहर जा,जीने की कोई राह बता जा 

बचे जो पल हैं चंद ज़िन्दगी के,कैसे संवारूँ ज़रा तू बता जा 

जिन्दगी ने कहा कुछ यूँ मुस्कुरा कर,प्यार ख़ुद से तू कर ले दुनिया भुला कर 

परमात्मा से लौ तू लगा ले,जीवन का सच्चा आनन्द पा ले 

स्वर्णिम ये पल मत व्यर्थ गँवा,बात मेरी तू मान जा 

प्रभु का प्यार जब तुझको मिलेगा,तू प्यार का इक दरिया बनेगा 

ये दरिया जब अनन्त में जा मिलेगा,तब लक्ष्य को तू पा ही लेगा

मौलिक/अप्रकाशित 

   वीणा 

 

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Comment by Veena Gupta on December 27, 2020 at 6:08am

कबीर जी,रचना की सराहना के लिए धन्यवाद.आप ऐसे ही अपने सुझाव देते रहें,आभार आपका 

Comment by Samar kabeer on December 4, 2020 at 5:13pm

मुहतरमा वीणा जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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