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प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए (पूरी ग़ज़ल)

वो फख्र से जुदा हुए अनजान बन गए
प्यार का क़तल किया दीवान बन गए (1)

देते कभी थे इश्क़ में जन्मो के वास्ते
वो चार रोज़ में ही बेगान बन गए (2)

वादों की और इरादों की लम्बी कतार थी
फहरिस्त उन इरादों के अरमान बन गए (3)

अक्सर वफ़ा की कसमें जो खाते थे बार बार
कल तोड़ के कसम वो बेईमान बन गए (4)

महफ़िल कभी जिनके लिए हमने सजाई थी
आज उनकी महफ़िलों के महमान बन गए (5)

एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ था हमें
साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गए (6)

मिलते वहीं थे घाट पे करते थे गुफ्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए   (7)

उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए (8)

अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए (9)

चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए (10)

किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन (11)

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on June 13, 2020 at 4:16pm

जनाब विनय प्रकाश जी आदाब,अच्छा प्रयास है,बधाई ।

लेकिन जब तक आप बह्र,शिल्प,व्याकरण पर ध्यान नहीं देंगे,काम नहीं बनेगा,इसके लिए आपको अध्यन करना होगा ।

मंच पर आई ग़ज़लों को और उनकी टिप्पणियों को पढ़ें तो ये आपके सीखने में सहायक होंगी ।

Comment by Dimple Sharma on June 12, 2020 at 3:42pm

आदरणीय विनय प्रकाश तिवारी जी नमस्ते, इस खुबसूरत ग़ज़ल पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

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