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अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास

221  2121   1221  212

दिल से सवाल होठों से ताले नहीं गए.
दुनिया के ज़ुल्म खाक में डाले नहीं गए

.

जिस दिन से इंतज़ार तेरा दिल से मिट गया,
उस दिन से मेरे दिल में उजाले नहीं गए.

अपनी समझ से कैसे बने बच्चों का वजूद,
अपनी समझ से शेर तो ढाले नहीं गए.

कल रात उसने ख़्वाब में आकर कहा मुझे,
रिश्तें तो आपसे भी संभाले नहीं गए.

बरसों पुरानी बातों ने दिल को जकड़ लिया,
कुछ दोस्त जिंदगी से निकाले नहीं गए

.

जिससे किसी के दुख को मैं कर्मों का फल कहूं,
ऐसे यकीन मुझसे तो पाले नहीं गए.

दुष्यंत की वो बात सही हो भी सकती थी,
तबीयत से संग हमसे उछाले नहीं गए.

इतना यकी तो हो गया सुनता नहीं कोई,
सूखे लबों से फिर भी क्यों नाले नहीं गए

.

हर बार टूट कर मिला जुड़ने का इक हुनर,
अच्छा हुआ नसीब के जाले नहीं गए.

सौ बार तुमने साथ निभाने की बात की,
अपने ही दर्द तुमसे संभाले नहीं गए.

अपने मिज़ाज़ को मिली है शायरी ऐसी,
जिसमें खुशी के फूल ही डाले नहीं गए

.

सोचा तो बहुत तेरी हिमायत में दिल फरेब,
पत्थर से तेरे वादे उबाले नहीं गए.

'अहसास'हर शिकस्त का बस एक है जवाब,
किस्मत के लिखे फैसले टाले नहीं गए।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on January 31, 2020 at 3:35pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'तबीयत से संग हमसे उछाले नहीं गए'

ये मिसरा बह्र में नहीं,सहीह शब्द है "तबीअत"

'किस्मत के लिखे फैसले टाले नहीं गए'

ये मिसरा बह्र में नहीं है ।

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