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तरही ग़ज़ल नंबर-2

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

आज तारीफ़ें मिरी उनकी ज़बानी हो गईं
हासिदों की देख शकलें ज़ाफ़रानी हो गईं

उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ
सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं

आज हैं मासूम सीता की तरह ये रावणों
क्या करोगे लड़कियाँ गर ये भवानी हो गईं

देखते थे कल हिक़ारत से हमें वो देख लें
किस क़दर नस्लें हमारी आज ज्ञानी हो गईं

मैं तो हूँ ख़ामोश लेकिन लोग कहते हैं "समर"
तेरी ग़ज़लें एह्ल-ए-दिल की तर्जुमानी हो गईं

________

हासिदों :- जलने वाले
यकलख़्त :- फ़ौरन
अलअमाँ :- पनाह बख़ुदा
सद :- सौ बार

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 3:02pm
जनाब नरेन्द्रसिंह चौहान जी आदाब,आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 2:59pm
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,अस्ल में ये भी मश्क़-ए-सुख़न का एक नायाब तरीक़ा है, जब हम एक ज़मीन में एक ग़ज़ल कहने के बाद मुतमइन हो जाते हैं,दर अस्ल वहीं से उसी ज़मीन में दूसरी ग़ज़ल कहना शुरू कर देना सागहिये,और ज़मीन मुश्किल हो तो क्या कहना,दूसरि ग़ज़ल कहने से हमारे ज़ह्म की परतें खुलती हैं और मश्क़-ए-सुख़न हो जाती है ।
ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 2:49pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ
Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 2:47pm
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 2:44pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 2:41pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 2:39pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on April 9, 2017 at 2:37pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 9, 2017 at 9:48am

 आदरणीय समीर सर .

मेरी समझ में चटान शब्द चट्टान की जगह नहीं ले सकता. आपका अभिमत जानना चाहता हूँ. . सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 7:22am

आदरणीय समर भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , कठिन ज़मीन पर , वो भी दूसरी .... दिल से बधाइयाँ ।

चटान  ? हो सकता है सही हो ... पर मेरी नज़र से अभी तक चट्टान सही है .. दावा नही है ।

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