For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - चाहे आँखों लगी, आग तो आग है.. // --सौरभ

२१२ २१२ २१२ २१२

 

फिर जगी आस तो चाह भी खिल उठी
मन पुलकने लगा नगमगी खिल उठी
 
दीप-लड़ियाँ चमकने लगीं, सुर सधे..
ये धरा क्या सजी, ज़िन्दग़ी खिल उठी
 
लौट आया शरद जान कर रात को
गुदगुदी-सी हुई, झुरझुरी खिल उठी
 
उनकी यादों पगी आँखें झुकती गयीं
किन्तु आँखो में उमगी नमी खिल उठी
 
है मुआ ढीठ भी.. बेतकल्लुफ़ पवन..
सोचती-सोचती ओढ़नी खिल उठी
 
चाहे आँखों लगी.. आग तो आग है..
है मगर प्यार की, हर घड़ी खिल उठी
  
फिर से रोचक लगी है कहानी मुझे
मुझमें किरदार की जीवनी खिल उठी
 
नौनिहालों की आँखों के सपने लिये
बाप इक जुट गया, दुपहरी खिल उठी
*****************
-सौरभ

Views: 2161

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 12:40pm

भाई दिनेश जी, रचना पर समय और टिप्पणी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 12:39pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ कुश क्षत्रप जी, आपकी टिप्पणी से मन प्रसन्न है. प्रस्तुति को समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद.
भाई, लखनवी ज़ुबां से आपका तात्पर्य मुआ शब्द से है. लेकिन उक्त शेर में इसके होने के कारण पर आप ध्यान दें तो और भी रोचक लगेगा, ऐसा मुझे लगता है.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 12:39pm

अनन्य अनुज रवि प्रभाकर जी, प्रस्तुत हुई ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. जिस शेर की आपने चर्चा की है, वह मुझे भी अत्यंत प्रिय है, रवि भाई.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 12:38pm

आदरणीय नीरज जी, संभवतः आपकी कोई पहली टिप्पणी मेरी किसी रचना पर आयी है. आपने जिस सहजता से शब्दों के होने का कारण समझा और साझा किया है, वह आपकी भाषाई समझ की बानग़ी है. आप नये सदस्य हैं. लेकिन अपने होने के क्रम में इस मंच के वातावरण को समझने का प्रयास कर रहे होंगे. विश्वास है, आपका होना मंच के माहौल को समरस रखेगा. यह मंच परस्पर सीखने-सिखाने के उद्येश्य से रचनाओं और टिप्पणियों की अपेक्षा करता है. ग़ज़ल पर आपसे मिले अनुमोदन से मन प्रफुल्लित है.
हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 12:37pm

आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, आपसे मिला उत्साहवर्द्धन मुदित कर रहा है. हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 12:36pm

आदरणीय अफ़रोज़ सहर साहब, इस प्रस्तुति में आपको जो कुछ अच्छा लगा उसकी चर्चा हो तो वह उचित होगा.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 12:36pm

भाई बृजेश कुमार ब्रज जी, आपसे मिला अनुमोदन तोषदायी है. हार्दिक धन्यवाद

Comment by दिनेश कुमार on October 9, 2017 at 6:25am
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आ. सौरभ सर। दिली दाद व बधाई। वाह
Comment by नाथ सोनांचली on October 9, 2017 at 5:59am
आद0 सौरभ जी सादर अभिवादन, आपकी ग़ज़ल हिंदी के खूबसूरत अहसास के साथ साथ लखनवी जुबाँ को जोड़ती हुई बढ़िया गजलियत भाव से सुगन्धित हो उठी है। जो शेर सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह
नौनिहालों की आँखों के सपने लिये
बाप इक जुट गया, दुपहरी खिल उठी
वैसे सभी शेर अलग अलग अंदाज को बयाँ कर रहे हैं।
इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई।
Comment by Ravi Prabhakar on October 8, 2017 at 9:59pm

आदरणीय भाई जी,

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही । तकनीकी तौर पर तो कुछ कहने के काबिल नहीं हूं । परन्तु भाव बहुत ही बढ़िया  है खासकर :

नौनिहालों की आँखों के सपने लिये
बाप इक जुट गया, दुपहरी खिल उठी

यह शे' अर एकदम से दिल में उतर गया। हार्दिक बधाई निवेदित है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service