For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल (212-212-212-212)

(212-212-212-212)

मेरे सुर से तेरा सुर मिलाना हुआ
और जीवन मेरा इक तराना हुआ ॥

मैने देखी है इक चलती फ़िरती ग़ज़ल
है मिजाज इस लिए शायराना हुआ ॥

आइए हमनशी बैठिए पलकों पर
ये कहें  ख्वाब में कैसे आना हुआ ॥

थी दवा तो वही काम तब कर गई
जब तेरा अपने हाथों पिलाना हुआ ॥

वो भी लगने लगे अब मुझे अपने से
"जब से गैरों के घर आना जाना हुआ ॥"

हज़्म कैसे करेंगे मेरी ये ग़ज़ल
वो जो खाते हैं बारीक छाना हुआ ॥

देख के तुझ को ये ठण्डी आहें भरे
दिल मेरा बर्फ़ का कारखाना हुआ ॥

(मौलिक एवम अप्रकाशित)

Views: 1862

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on February 19, 2017 at 5:00pm
आदरणीय गुरप्रीत जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने ।हर शे'र उम्दा लगा मुझे । कथ्य में बड़ी सादगी नज़र आई । वास्तव में ओबीओ मंच नवहस्ताक्षरों के लिए वरदान है । जहाँ सवाल ग़ज़ल की बह्र का है तो समर कबीर से बड़ा अरूज़ी कौन है । वे ही अच्छा मार्ग दर्शन करेंगे । दिली मुबारकबाद ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 19, 2017 at 3:06pm
आद0 गुरप्रीत जी सादर अभिवादन। मुझे आपकी गजल बेहद पसंद आयी। बेहतरीन ढंग से आपने लिखा है। मुझे शिल्प का विशेष ज्ञान तो नही पर हाँ कथ्य बेहतर लगा। बधाई आपको उम्दा सृजन के लिए।
Comment by Gurpreet Singh jammu on February 18, 2017 at 8:57am
सभी गुरुजनों और दोस्तों को मेरा नमस्कार.....जैसा कि आप जानते हैं कि मैने अभी ग़ज़ल सीखना शुरू किया है..और इस प्रकिर्या में इस मंच ने मेरा मार्गदर्शन कर रहा हैं .....मेरी रचना में जो गलतियां होंगी वो तो आदरणीय समर कबीर जी और अन्य गूरूजन बता ही देंगे......लेकिन मेरी विनती है कि अगर पढ़ने वाले किसी को भीे किसी शेअर के बारे में लगे कि यह शेअर कुछ कमज़ोर है या इसे ऐसे कहते तो और बेहतर होता......अगर कोई मेरी रचना में कुछ सुधार करना चाहे तो उसका खुले दिल से स्वागत है और मैं आपका बहुत आभारी होऊंगा. क्योंकि मुझे अपने हरेक शेअर के बारे में ऐसा ही लगता है कि इसमें कुछ न कुछ कमी रह गई है ..कई बार शेअर ठीक ठाक होता है और व्याकरण और बह्र की कसौटी पर भी खरा उतरता है लेकिन फ़िर भी कुछ खास बात नही बनती..ऐसी हालत में आप सब के सुझाव बहुत कीमती होंगे..क्योंकि यह यह मंच मेरे लिए सीखने का बहुत बड़ा ज़रिया है.....
जब समय मिलता है तो मैं ओ बी ओ के पुराने अंकों को पढ़ लेता हूँ...बहुत कुछ सीखने को मिलता है...यह ग़ज़ल भी obo के 42वे तरही मुशायरे में दिए गए मिसरे "जब से गैरों के घर आना जाना हूँ" पर लिखी है...
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service