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यूँ ज़िन्दगी में अब मेरी वो बात नहीं है

221 1221 1221 122

यूँ ज़िन्दगी में खुशियों सी वो बात नहीं है,
बिछुड़ा है जरा साथ मगर मात नहीं है |

मैं शिकवों भरी शामो सहर देख रहा हूँ,
ये घाव उठा दिल पे है सौगात नहीं है |

चलने लगी है आखों में रुक-रुक के ये नदिया,
ये गम का दिया रंग है बरसात नहीं है |

क्यूँ काल से उम्मीद रखूँ कोई रहम की,
है कर्मों की ये बात कोई घात नहीं है |

कुछ लोग लुटाते हैं शबो रोज़ नसीहत,
मैं कर सकूं ये बात भी औकात नहीं है |


________________________

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 1, 2016 at 8:44pm

वाह वाह और वाह  .... दिल को छूते इन दिलकश जज़्बातों से भरी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक हार्दिक बधाई आदरणीय हर्ष जी। 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 1, 2016 at 6:47pm
आदरणीय हर्ष महाजन जी हार्दिक बधाई । बहुत ही सुन्दर रचना।

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