For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुण्डलिया

[१]

साज़िश की ही बात में, बहके नित्य सुगंध.
फूलों से कहते रहे, बस तुमसे सम्बंध.
बस तुमसे सम्बंध, नहीं भौरों से रिश्ता.
पीकर वह मकरंद, चंद्र को समझे पिस्ता.
नित्य प्रभा का लाल, सृष्टि की करता पालिश.
मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश.


[२]

आंखों के आंसू बहे, जैसे गंगा नीर.
अधरों ने झट पी लिये, जैसे पियें फकीर.
जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.
औरों का सुख देख, स्वयं ही दुख पी जाते.
कहतीं नदिया ताल, सदा सबका मन राखो.
दीन - हीन संसार, देखता है इन आंखो.


मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार ..... केवल प्रसाद सत्यम

Views: 728

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 9:50am

आ० भण्डारी भाई जी, कट -पेस्ट करने में ऐसी गल्तियां हो ही जाती हैं...अब सुधार कर लिया है.  जी, ''मालिश'' की तुकांतता से सहमति प्रकट करने के लिया आपका तहेदिल से शुक्रिया.  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 9:45am

आ० रक्ताले भाई जी,  आपकी कोशिश बहुत अच्छी  है...आपने रचना पर अधिक ध्यान दिया जिसके लिये आपका आभार....////फूलों से कहते रहे....... कहते या कहती //...द्वितीय छंद में //जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.//.........यहाँ सम विषम चरणों का मेल देख लें,//राखो /आँखों .......तुक जांच लें//////  

यह बात आपने किस आधार पर कही....सम-विषम किसे कहते हैं?...उसका निर्वहन किस प्रकार किया जाता है?.....कुण्डलिया.. रचना के शब्द सन्योजन की प्रक्रिया किस प्रकार की जाती है? आप पुन: बारीकी से पढ़े..और स्वयं भी अम्ल करें.....फिर बतायें..कि क्या होना  चाहिये ?...सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 9:34am

आ. केवल भाई , आपने दूसरी प्रतिक्रिया जो मेरे नाम से दीहै , उसमे शायद आप किसी और को सम्बोधित है , नाम सुधार लीजिये नही तो उन तक आपनी बात नही पहुँचेगी ।

मालिश सच मे अच्छा तुकांत हो सकता है । आप वही कर लें। सादर ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 8:55am

आ० भण्डारी भाई जी,  आपकी कोशिश बहुत अच्छी  है...आपने रचना पर अधिक ध्यान दिया जिसके लिये आपका आभार....कोशिश ..से अच्छा या बेहतर तुकांत..मालिस... भी हो सकता है...सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 27, 2016 at 8:05am

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, अच्छे कुण्डलिया छंद रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई. फिरभी कुछ जगह एक बार देख लें. पहले छंद में //फूलों से कहते रहे....... कहते या कहती //./////द्वितीय छंद में //जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.//.........यहाँ सम विषम चरणों का मेल देख लें,//राखो /आँखों .......तुक जांच लें//सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 27, 2016 at 7:04am

आदरणीय ये कैसा रहेगा -- छंदों मे अल्पज्ञ हूँ , फिर भी एक प्रयास किया है ।

नित्य प्रभा का लाल,   दीप्ति की करता कोशिश

मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:23pm
आ० भण्डारी भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. यूं ही स्नेह बनाये रखे. भाई जी साजिश के तुकांत में मक्खन नहीं चल सकता इसलिए आम भाषा का स्तेमाल किया है..//पालिश शब्द का उपयोग सही है क़्या ?// के सम्बंध में आप सुधी जन ही बता सकेंगे...क्या उचित होगा.?./ आपका हार्दिक आभार. सादर्
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:22pm
आ० भण्डारी भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. यूं ही स्नेह बनाये रखे. भाई जी साजिश के तुकांत में मक्खन नहीं चल सकता इसलिए आम भाषा का स्तेमाल किया है..//पालिश शब्द का उपयोग सही है क़्या ?// के सम्बंध में आप सुधी जन ही बता सकेंगे...क्या उचित होगा.?./ आपका हार्दिक आभार. सादर्
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:17pm
आ० सतविंद्र भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. मेरा प्रयास सफल रहा इस हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर्
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:15pm
आ० श्याम नारायण भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. आपका हार्दिक आभार. सादर्

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service