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ग़ज़ल ( यक बयक हादसा घट गया )

ग़ज़ल (  हादसा घट गया )

--------

212 -212 -212

यक बयक हादसा घट  गया ।

राहे उल्फत से वह हट गया ।

ज़ुल्म में ही था शामिल करम

था गुमाँ मुझको वह पट गया ।

जाऊं सदक़े सियासत तेरे

हर कोई क़ौम में बट गया ।

नाव भी डगमगाने लगी

हो रहा है गुमाँ तट गया ।

ऐसा लगता है फ़हरिस्त से

नाम शायद मेरा कट गया ।

खाये पत्थर गली में तेरी

सर मेरा यूँ नहीं फट गया ।

उनका कूचा यह तस्दीक़ है

मैं यहां यूँ नहीं डट गया ।

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on June 15, 2016 at 10:25am

इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई

 सादर

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