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लघुकथा – इच्छा  

“ आज ऐसा माल मिलना चाहिए जिसे मेरे अलावा कोई और छू न सके,” कहते हुए ठाकुर साहब ने नोटों की गड्डी अपनी रखैल बुलबुल के पास रख दी और वहां से उठा कर हवेली के अपने कमरे में चल दिए.

“ जी सरकार ! इंतजाम हो जाएगा, ” कहते ही बुलबुल को याद आया कि सुबह ठकुराइन ने कहा था, ‘ बुलबुल बहन ! ठाकुर साहब तो आजकल मेरी और देखते ही नहीं. मैं क्या करूं ? ताकि उन को पा सकूं ? ’

यह याद आते ही उस की आँखों में चमक आ गई. उस ने नोटों से भरा बेग उठाया. फिर गुमनाम राह पर जाते-जाते ठाकुर और ठकुराइन को यह खबर भेज दी कि आज आप दोनों रात को दस बजे उस के अँधेरे कमरे में आ जाए, “ आप की इच्छा पूरी हो जाएगी.”  और बुलबुल उड़ गई.

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मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 1:18pm
आभार आ तेज वीर सिंह जी आप की प्रतिक्रिया मुझे सदा प्रोत्साहित करती है ।
Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 1:17pm
शुक्रिया आ सविता जी लघुकथा को सुन्दर कहने के लिए ।
Comment by Omprakash Kshatriya on August 5, 2015 at 1:15pm
आभार आप का आ मिथिलेश जी लघुकथा के अनुमोदन हेतु ।
Comment by savitamishra on August 5, 2015 at 12:16pm

बढ़िया कथा सादर _/\_


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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 11:47am

इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी

Comment by TEJ VEER SINGH on August 5, 2015 at 10:39am

आदरणीय ओमप्रकाश जी, हार्दिक बधाई!"जिसकी जूती उसी का सिर" वाली कहावत चरितार्थ कर दी!मज़ा आगया!अति उत्तम!

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