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गज़ल -( फिल बदीह ) - हौसले जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले

दिया गया मिसरा -"चिलचिलाती धूप में जब मोम से रिश्ते मिले।"

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2122   2122    2122   212

 

हौसला जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले

ताड़ सी ऊँचाइयों वाले बहुत बौने मिले

 

आस्था को व्यर्थ की बातें कहा करते थे जो

जब कठिन आया समय , वो दैर में झुकते मिले 

 

जिनका दावा रहबरी का था उन्ही के पैर क्यूँ

मोड़ पर फिर लड़खड़ाये , दम ब दम रुकते मिले

 

क्यूँ यक़ीं कर लूँ किसी पे, तुम सा अपना भी अगर

उस्तरा लाये छिपा के , पीठ पर साधे मिले  

 

आज उजली धूप के कानून के रक्षक हैं जो

रात की तारीक़ियों में,  आइना तोड़े मिले

 

लाठियाँ जिनकी चलीं थीं नातुवाँ की पीठ पर

गिड़गिड़ाते, मंत्रियों से हाथ भी जोड़े मिले

 

जिनपे हमको था यक़ीं , हैं रोशनी के हम सफर

वो गड़े पत्थर नुमा अब राह के रोड़े मिले

 

बीच उनके हम कहाँ मिल्लत कराते , जो सभी

दरमियाँ खोदे हैं खाई , हर क़सम तोड़े मिले

 

------------------------------------------------- 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

Views: 910

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 12:12pm

आदरणीय नरेन्द्र भाई , आपका बहुत आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 12:12pm

आदरणीय दिनेश भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 12:11pm

आदरणीय श्याम भाई , आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 12:11pm

आदरणीय विजय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ \

Comment by narendrasinh chauhan on June 8, 2015 at 11:45am

खूबसूरत ग़ज़ल

Comment by दिनेश कुमार on June 8, 2015 at 11:44am
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है सर...
आस्था को व्यर्थ की बातें कहा करते थे जो... बहुत खूब .. वाह वाह
हार्दिक दाद व मुबारकबाद आदरणीय .
Comment by Shyam Narain Verma on June 8, 2015 at 11:25am

क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2015 at 11:20am

हौसले जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले
ताड़ सी ऊँचाइयाँ वाले बहुत बौने मिले
आस्था को व्यर्थ की बातें कहा करते थे जो
खुद, कठिन वक़्तों में अपने, दैर में झुकते मिले
बहुत खूब लिखा है, यूँ लगा कि सरकारी ओहदेदारों के बारे में कुछ लिखा है.
बधाई, आदरणीय, गिरिराज भंडारी जी, सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 10:39am

बहुत आभार आपका , आदरणीय मनोज भाई ।

Comment by मनोज अहसास on June 8, 2015 at 10:06am
खूबसूरत ग़ज़ल को नमन
सादर

कृपया ध्यान दे...

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