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ग़ज़ल-नूर: जिस्म का क्या हुआ ख़बर न हुई.

२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)

ज़िन्दगी हाल का सफ़र न हुई
जैसे इक रात की सहर न हुई.
.

तेरी जानिब मैं देखता ही रहा
मेरी जानिब तेरी नज़र न हुई.
.
फ़ायदा क्या हुआ ग़ज़ल होकर
तर्जुमानी तेरी अगर न हुई.
.
पहले पहले हया का पर्दा रहा
फिर ज़रा भी अगर मगर न हुई .
.
दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी
याद तेरी इधर उधर न हुई.
.
ख़ुद को भूला तुझे भुलाने में
कोई तरकीब कारगर न हुई.
.
‘नूर’ बिखरा था याद है मुझको
जिस्म का क्या हुआ ख़बर न हुई.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 808

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:37am

शुक्रिया आ. मोहन  सेठी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:37am

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:37am

शुक्रिया आ. महिमा श्री जी 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 22, 2015 at 7:30am

दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी 
याद तेरी इधर उधर न हुई.

वाह क्या बात है ....बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 10:50pm
आदरणीय नीलेश जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है। दिल से दाद कुबूल फरमाये
Comment by MAHIMA SHREE on April 21, 2015 at 8:48pm

दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी 
याद तेरी इधर उधर न हुई......उम्दा बधाई आपको

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2015 at 11:45am

शुक्रिया आ. राजेश कुमारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2015 at 11:44am

शुक्रिया आ. जाँ गोरखपुरी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2015 at 11:44am

शुक्रिया आ. HS Yadava साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2015 at 11:44am

शुक्रिया आ. समर कबीर साहब.
ग़ज़ल पोस्ट करने के बाद आ. दिनेश जी ने ध्यान दिलाई थी ये त्रुटी जिसे मैंने कमेंट में ठीक आपके सुझाव के अनुरूप सुधार लिया है. साथ ही अपनी मूल प्रति में भी बदलाव कर लिया है.
सादर 
 

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