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सारी दुनिया को तमाज़त से बचा लेते हैं
हम वह बादल हैं जो सूरज को छुपा लेते हैं

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं

शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं

कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी औस के क़तरों से बुझा लते हैं

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं

------ समर कबीर

मौलिक / अप्रकशित

Views: 741

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Comment by Samar kabeer on February 2, 2015 at 10:09pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,ग़ज़ल आप को पसंद आ गई , हौसला अफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on February 2, 2015 at 10:05pm
जनाब हरी प्रकाश दुबे जी ,आदाब ,महनत वसूल हो गई साहिब, ग़ज़ल आपको पसंद आ गई , बहुत बहुत शुक्रिया|
Comment by Samar kabeer on February 2, 2015 at 9:58pm
जनाब दिनेश कुमार जी ,आदाब ,ग़ज़ल की तारीफ़ के लिये शुक्रिया
Comment by vijay on February 2, 2015 at 9:33pm
बेहतरीन ग़ज़ल
10000 लाइक्स

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 2, 2015 at 8:09pm

आदरणीय समर कबीर जी,  हर एक शेर लाजवाब हुआ है, बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है  , बधाई

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 7:07pm

आदरणीय समर कबीर जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल , बधाई आपको  !

सारी दुनिया को तमाज़त से बचा लेते हैं
हम वह बादल हैं जो सूरज को छुपा लेते हैं......ये गज़ब लिखा है आपने !

Comment by दिनेश कुमार on February 2, 2015 at 4:34pm
क्या बात है, आ समर कबीर साहब, हर एक शेर लाजवाब हुआ है। वाह ... वाह ...!!

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