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एक कप चाय (लघुकथा)

"यार एक कप चाय मिल जाती तो मजा आ जाता I"  
पतिदेव का हुक्म सुन घर की साफ़ सफाई करके थकी हारी पत्नी रसोईघर की तरफ मुड़ गयी.
साहब सोफे पर बैठ कर टीवी ऑन कर मजे से चैनल बदलते हुए कह रहे थे:
"आज तो यार बहुत थक गए, दीपावली पर बाज़ार जाना, उफ्फ्फ्फ़ ...."
पति की हां में हां मिलाते हुए पत्नी चाय देकर वापिस मुड़ गई और अपने काम में लग गयी !

"मौलिक व अप्रकाशित"

आलोक

मथुरा

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 27, 2014 at 2:09pm

 आलोक जी आपको  - बहुत बहुत बधायी i

Comment by Alok Mittal on October 27, 2014 at 11:32am

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी.......हौसला बढाने का शुक्रिया आपका !!

Comment by Alok Mittal on October 27, 2014 at 11:32am

आदरणीय somesh kumar जी.....आपका दिल से बहुत आभार !

Comment by Alok Mittal on October 27, 2014 at 11:06am

आदरणीय vinaya kumar singh...आपका बहुत बहुत आभार !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 27, 2014 at 10:23am

बहुत ही बढ़िया लघुकथा. बधाई स्वीकारें आदरणीय आलोक जी

Comment by somesh kumar on October 26, 2014 at 9:18pm

पुरुष और स्त्री की चली आ रही मानसिकता और स्वीकार्यता का बेहद सरल व् स्वभाविक चित्रण 

Comment by विनय कुमार on October 26, 2014 at 1:12pm

बहुत बढ़िया लघुकथा , थकान दोनों को होती है लेकिन फ़र्क़ यही होता है..

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