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खुद का भी अहसास लिखो

खुद का भी अहसास लिखो!
एक मुकम्मल प्यास लिखो!!

उससे इतनी दूरी क्यों !
उसको खुद के पास लिखो !!

खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो !!

 गलती उसकी बतलाना !
खुद का भी उपहास लिखो!!

हे ईश्वर ऊब गया हूँ!
मेरा भी अवकाश लिखो!!
***************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
 

Views: 875

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 12:57pm

उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मीना  जी  ....     सादर

Comment by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 12:55pm

अमूल्य सुझाव हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सिज्जू जी  ....     सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 24, 2014 at 12:49pm

आदरणीय रामशिरोमणि जी कोशिश अच्छी है मगर इस ग़ज़ल के आखिरी शेर में अवकाश सही नहीं है

Comment by Meena Pathak on August 24, 2014 at 12:42pm

खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो !!
.......................बहुत खूब ,, बधाई

Comment by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 12:38pm

अमूल्य सुझाव हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,,जी पूरा प्रयास करूंगा। ....     सादर

Comment by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 12:33pm

हार्दिक आभार भाई जीतेन्द्र जी  ....     सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 24, 2014 at 11:48am

हे ईश्वर मैं ऊब गया ........

कुछ मिसरों को थोड़ा और प्रवाह दिया जा सकता है.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 24, 2014 at 11:37am

खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो....बहुत सटीक. शायद! वर्तमान और भविष्य संवर जाए, बधाई आदरणीय राम भाई

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