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क्या है जो रोज़ गुनाह करते हो --डा० विजय शंकर

क्या किसी भी सजा से नहीं डरते हो
क्यों रोज़ गुनाह पे गुनाह करते हो
दुनियाँ जहाँन की सब खबर रखते हो
खुद क्या हो बिलकुल बेखबर रहते हो
अपने कर्मों पे नज़र नहीं रखते हो
कौन क्या कर रहा परेशान रहते हो
औरों के खजाने पे नज़र रखते हो
कभी चोरी के नोट अपने गिनते हो
शेर की खाल में गीदड़ नज़र आते हो
घर में आईने बिलकुल नहीं रखते हो
बैसाखियाँ ले कर गुजर बसर करते हो
दौड़ में सबसे आगे हो, दम भरते हो
ईश्वर की दुनियाँ को बहुत बनाते हो
भगवान से बिलकुल भी नहीं डरते हो
क्या है जो रोज़ गुनाह करते हो
किसी भी सजा से नहीं डरते हो

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 29, 2014 at 11:24am
प्रिय जीतेन्द्र जी , बात आपकी सही है , हमारा काम इशारा करना है , करते हैं . बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 10:43am

आजकल कहाँ किसी को कोई फिक्र या डर है, जो होगा देखा जाएगा. एक कडवी सच्चाई को रचना में पिरोने पर , आपको बहुत -२ बधाई आदरणीय डा.विजय जी

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