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बहुत रोया मैं,
पड़ोसी चाची के मर जाने पर
गाँव से शहर जाने पर
हाल के दंगे में
आग देखकर

डर जाने पर
खुद को लूटा के

घर जाने पर
आंसुओं ने साथ छोड़ दिया
नहीं रोया मैं,
माँ के मर जाने पर,
वो 

हर सहर के साथ

हॅसते देखना चाहती थी.
विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 11, 2014 at 10:40am

आ० शिज्जु शकूर जी.
उत्साह वर्धन के लिए बहुत धन्यवाद.सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 11, 2014 at 10:10am

एक हृदयस्पर्शी रचना बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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