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जैसे तैसे काम चलाता है आदमी - डा० विजय शंकर

बहुत दिन हो गए हँसी मजाक किये हुए ,
बहुत दिन हो गए कोई व्यंग लिखे हुए ,
तो चलो आज ही ये काम भी कर लेतें हैं
बीते बहुत दिन परेशान जमाने को हँसे हुए ।
मित्रों , हँसना है तो विवेक-मुक्त होकर हँसे अन्यथा शब्दों में ही रह जायेगें और हस भी नहीं पायेगें .

जैसे तैसे काम चलाता है आदमी ,
कोई काम ठीक से कर नहीं पाता है आदमी .
यह तो सृष्टि की अद्वितीय रचना हैं , जो
एक साथ सत्रह - अदठ्ठारह काम
कर लेतीं हैं , बिना कोई गलती किये .
वो एक साथ खाना बना लेतीं हैं ,
उबलता दूध बिना गिराये हुए ,
साथ में मोबाईल पर
जरुरी काम निपटाते हुए ,
मायके और ससुराल को तुलनाते हुए ,
पड़ोसिनों की आदतें बताते हुए ,
अपनी हर ख़ास सहेली के हर राज बताते हुए ,
अपने पति को अवगुणों की खान बताते हुए ,
पति (देव) पर पूर्ण दृष्टि फिराते हुए ,
और एक पति , एक कप चाय भी बनाएगा ,
तो किचेन को युद्ध-स्थल सा छोड़ आएगा ,
वो कहेंगीं , आप तो न , मेरे किचेन में
जाया न करो , मेरा काम बढ़ाया न करो .
कितने आगे बढ़ गयीं वो ,
कितना पीछे रह गया आदमी .
फिर भी उनकीं भावना देखिये
आस्था और विश्वास देखिये ,
वो पति जो सीधा सादा है ,
सीधे रस्ते आता है ,
सीधे रस्ते जाता है .
उनकें हिसाब से ,
जिसको कुछ नहीं आता है .
उसे वो सुधार के रहेंगीं
अपनी मर्जी का बना के रहेंगीं .
क्योंकि पूरा है विश्वास ,
मन में है विशवास ,
पक्का है विशवास .
वो होंगीं कामयाब .
वो होंगीं कामयाब .
----------------
मौलिक एवं अप्रकाशित
डा० विजय शंकर

Views: 706

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 11:22pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुश्री सविता मिश्रा जी ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 11:19pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मुकर्जी ,
सादर.
Comment by savitamishra on June 18, 2014 at 11:18pm

bahut sundar

Comment by coontee mukerji on June 18, 2014 at 10:02pm

आज की नारी पुरान.....साथ में मोबाईल पर
जरुरी काम निपटाते हुए ,
मायके और ससुराल को तुलनाते हुए ,
पड़ोसिनों की आदतें बताते हुए ,
अपनी हर ख़ास सहेली के हर राज बताते हुए ,
अपने पति को अवगुणों की खान बताते हुए ,
पति (देव) पर पूर्ण दृष्टि फिराते हुए ,
और एक पति , एक कप चाय भी बनाएगा ,
तो किचेन को युद्ध-स्थल सा छोड़ आएगा ,.....बहुत सुंदर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 2:48pm
आ o गोपाल नारायण जी ,
जीवन में कुछ हल्का फुल्का मजाक न हो तो बड़ा नीरस सा हो जाता है जीवन । ऐसे किरदारों को निभाते ही तो हम जी लेते है जीवन । धन्यवाद ।
सादर ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 2:43pm
आ o जीतेन्द्र गीत जी ,
रचना आपको अच्छी लगी धन्यवाद , आपने सही कहा , यह खट्टे मीठे स्वाद ही तो हैं जो जीवन को मधुर और रुचिकर बनाते हैं । इसी से तो अच्छी चलती है जिंदगी ।
सादर ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 2:39pm
आ o लक्ष्मण धामी जी , हास्य है , कुछ बेसिरपैर का , आपको अच्छा लगा धन्यवाद , वैसे बहुत कुछ सीख चुका है आदमी ।
सादर ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 2:35pm
आ o लक्ष्मण धामी जी , हास्य है , कुछ बेसिरपैर का , आपको अच्छा लगा धन्यवाद , वैसे बहुत कुछ सीख चुका है आदमी ।
सादर ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2014 at 1:08pm

विजय जी

वाकई बड़ा पुर असर मजाक है  i जिन्दगी के अनुभवों से तराशा  हुआ  i इस मजाक के किरदार हम सभी है  i  सादर i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 12:05pm

बहुत सुंदर, जिन्दगी चलती रहती है चलती रहती है अनवरत, बस यूँ ही खट्टे-मीठे स्वाद के साथ. बहुत बहुत बधाई डा.विजय जी :))

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