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हे मन कर कल्पना....

हे मन कर कल्पना

बना फिर अल्पना

खोल कर द्वार

सोच के कर पुनः संरचना

हे मन कर कल्पना

 

क्यूँ मौन तू हो गया

किस भय से तू डर गया

खड़ा हो चल कदम बढ़ा

करनी है तुझे कर्म अर्चना   

हे मन कर कल्पना

 

छोड़ उसे जो बीत गया

भूल उसे जो रीत गया

निश्चय कर दम भर ज़रा

सुना समय को अपनी गर्जना

हे मन कर कल्पना

 

पथ है खुला तू देख तो

नैनो को मीच खोल तो 

ऊंचाई पर ही फल मीठा मिले

बिन गाये नहीं होती वन्दना

हे मन कर कल्पना

 

किनारे छोड़ नदी में उतर

तैर कर असत्य पार आ

बिन मरे न कोई स्वर्ग पाये

गढ़नी है तुझे नयी अभिव्यंजना

हे मन कर कल्पना……

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

प्रियंका.....

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Comment

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Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:43pm

आदरणीय बृजेश सर ...बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:41pm

आदरणीय आशुतोष सर 

आपकी बधाई स्वीकार सर ....रचना पर आपकी नज़र के लिए ...बहुत बहुत आभार...

Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:39pm

आदरणीय विजय सर
आपकी प्रशंसा के लिए दिल से आभारी हूँ ...बहुत बहुत आभार आपका.... 

Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:38pm

आदरणीय सुरेन्द्र सर 

प्रशंसा का बहुत बहुत शुक्रिया......

Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:37pm

आदरणीय गोपाल सर
आपको रचना पसंद आई ...बहुत खुशी हुई ....आशीर्वाद बनाये रखें ....धन्यवाद सर... 

Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:36pm

आदरणीय श्याम जी ...शुक्रिया ....

Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:35pm

आदरणीय शिज्जु सर .....बहुत बहुत धन्यवाद आपका..... 

Comment by Priyanka singh on May 28, 2014 at 9:33pm

आदरणीय मीना जी ....आपकी पसंदगी का शुक्रिया ....

Comment by बृजेश नीरज on May 27, 2014 at 7:35pm

अच्छी रचना है! आपको बहुत बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 27, 2014 at 2:21pm

आदरनीय ..इस बेहतरीन रचना लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें /सादर 

कृपया ध्यान दे...

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"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
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