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गज़ल - राहों में दीवारें हैं - पूनम शुक्ला

2222. 222

बजती क्यों झंकारें हैं
जब सजती तलवारें हैं

मुँह पर ताले ऐसे क्यों
अब उठती ललकारें हैं

आँखों में देखो पानी
उफ इतनी मनुहारें हैं

कब बदलेगी ये झुग्गी
हाँ बदली सरकारें हैं

काँटे ही काँटे हैं बस
राहों में दीवारें हैं

बहना इतना मुश्किल क्यों
दिखती बस मझधारें हैं ।
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by ajay sharma on November 7, 2013 at 10:21pm

आँखों में देखो पानी
उफ इतनी मनुहारें हैं  vishesh ....

कब बदलेगी ये झुग्गी
हाँ बदली सरकारें हैं     ati uttam ,,,contrast .....

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 2:57pm

An exemplary oopinion---- Bahana kitna mushkil ha jab dikhti manjhdharein hain.

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