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ग़ज़ल- लगा दूँ आग पानी में

1222. 1222. 1222

जरा ठहरो लगा दूँ आग पानी में
कहीं गुम हो न जाए फाग पानी में

कहीं तो डोलती होगी हवा मीठी
पकड़ कर खींच लाऊँ राग पानी में

चले तो थे कदम उसके यहीं शायद
चहकता तो नहीं है काग पानी में

फिज़ाओं में कभी तो रौनकें होंगी
लहकता बोलता है बाग पानी में

न आ जाए कहीं सैलाब उठ जा भी
कहीं तू बह न जाए जाग पानी में
पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Meena Pathak on October 7, 2013 at 5:25pm

सुन्दर गज़ल  बधाई आप को 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 7, 2013 at 5:14pm

कभी तो रौनकें होगी फिज़ाओं में
लहकता बोलता है बाग पानी में -- अति सुन्दर..

बधाईयां आदरेया.!

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 3:41pm

खूबसूरत ख़याल हैं आदरणीया -

चले तो थे कदम उसके यहीं शायद
चहकता तो नहीं है काग पानी में

कभी तो रौनकें होगी फिज़ाओं में
लहकता बोलता है बाग पानी में

    ,बहत बधाई इस प्रस्तुति के लिए !!

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