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१ २ २ २ / १ २ २ २ /१ २ २ २ 

न  मिलने का नया, उसका बहाना है.

उसे हर हाल बस, मेरा दिल दुखाना है .

कहाँ तक सुनें, कभी तो खत्म हो जाएँ,

नए किस्से नया, उसका हर फ़साना है.

जिसे देखो, वो संग ले हाथ में, दौड़े,

जहाँ में मुझ पागल का, क्या ठिकाना है .

सितमगर लाख बारूद बो, ज़मीनों में 

अमन की फसलें, दिल में लहलहाना है.

नई हर चाल उसकी, पैंतरे खूब हैं,

उसे हर  हाल में, मुझे हराना है.

रिवाजों में न कैद कर तू बेटी को

उसे दुनिया के आगे सर उठाना है .

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by shalini rastogi on September 20, 2013 at 11:04pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव  जी .. आपके सुझाव को ध्यान में रखूंगी 

साभार !

Comment by shalini rastogi on September 20, 2013 at 11:03pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , सही कहा आपने मात्रा गिराने का अभी अंदाज़ा नहीं हो पता मुझे .. पर सीखने का प्रयास कर रही हूँ .. 

सधन्यवाद !

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 20, 2013 at 3:46pm

आदरणीया शालिनी जी ग़ज़ल अभी आपसे श्रम और कसावट की मांग कर रही थी आपने तनिक जल्दबाजी कर दी भाव बहुत ही सुन्दर है थोडा समय देती तो आनंद आ जाता, खैर प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by Parveen Malik on September 20, 2013 at 2:56pm
आदरणीय शालिनी जी गजल का तो मुझे ज्ञान नहीं पर गजल के भाव बहुत खूबसूरत हैं बधाई स्वीकारें ... सादर धन्यवाद !
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 20, 2013 at 1:57pm

अच्छी गज़ल की बधाई शालिनीजी , प्रवाह में रुकावट बहुत है ।

जहाँ में मुझ पागल का ( जहाँ में  पागलों  का ) या-- मुझ जैसे पागल का जहाँ में, क्या ठिकाना है

पैंतरे खूब हैं, ( पैंतरे भी खूब हैं,.) ।   मुझे गज़ल का ज्ञान नहीं है लेकिन प्रवाह बाधित न हो । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 1:26pm

आदरणीय शालिनी जी , प्रयास अच्छा है , भाव अच्छे हैं इसके लिये बधाई !! बह्र मे गडबडी है !! मात्रा गिनना और  गिराने वाला पाठ आप ज़रूर पढ़ें !!

कृपया ध्यान दे...

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