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याद है !!
जब तुम्हारा जन्म हुआ था
एक नर्म तौलिये में लपेट
मुझे तुम्हारी एक
झलक दिखलाई थी
तुम्हे देखते ही
भूल गयी थी दर्द सारा
खों गयी थी
गुलाब की पंखुड़ियों जैसी सूरत में
कितना प्यारा था स्पर्श तुम्हारा
नर्म
बिलकुल रुई के फाहों जैसा
खुश थी छू के तुम्हे

तुम मद मस्त नींद में
लग रहा था
लम्बा सफ़र तय किया है तुमने
कितने दिनों के थके हो जैसे
 
जब तुमने
आँखें खोली पहली बार
इस नयी दुनिया को देखने की कोशिश
तुम्हारी काली चमकदार आँखें
ढूंढ रही थीं कुछ
मै हर्षित देख रही थी
तुम्हे आँखें घुमाते हुए
जब तुमने
अपना सिर घुमा के
करीब देखा मुझे
एक हल्की मुस्कान के साथ
आँखे बंद कर के सो गये
जैसे तुमने पा लिया था उसे
जिसे ढूंढ रहे थे
मै तुम्हे नींद में मुस्कुराते देख
ऐसे तृप्त हो गयी थी जैसे
बंजर जमीन हो गई हो हरी-भरी
पतझड़ के बाद आ गयी हो बसंत ऋतु
पड़ी हो सूखी धरती पर बरखा की फुहार
आँचल से फूट पड़ी ममता की धार 
तुम्हे अपने आँचल से ढक
कलेजे से लगा कर
मै भी सो गई थी !!....
 
आज तेरी छवि है मेरे सामने
पर कलेजे से लगाने को तरसती हूँ
आँखों में आँसूओं का समंदर,
हृदय में ममता की लहरें
दूर तु मुझसे और मै तुझसे
मिलेगा कभी ना कभी
यही आस,
यही उम्मीद लिए बैठी हूँ ||!!!

मीना पाठक

मौलिक /अप्रकाशित

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Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 11:27pm

हार्दिक आभार आ० बृजेश जी

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 11:26pm

आभार आ० महिमा जी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 11:23pm

अति सुंदर रचना, माँ की ममता व् स्नेह भरी भावनाओं का बहुत ही खूबसूरती से चित्रण किया है आपने, बहुत बहुत बधाई आदरणीया मीना जी 

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 11:16pm

बहुत सुन्दर! मां की ममता और दर्द दोनों छलक गए।
आपको हार्दिक बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2013 at 10:47pm

बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति आदरणीया मीना जी बधाई आपको

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 9:46pm

प्रणाम आ० केवल प्रसाद जी ! उत्साहवर्धन के लिए आभार स्वीकारें
सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 5, 2013 at 9:42pm

आ0 मीना जी,   सादर प्रणाम!  वाह! बहुत सुन्दर अति मार्मिक प्रस्तुति हेतु ढेरों शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,  

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