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मौसम की मनमानी

मौसम की मनमानी है
सब आँखों में पानी है।

छाया बादल ये कैसा
दर्द दिया रूहानी है।

पावन है जग में सबसे
गंगा का ही पानी है।

जगती है आंखे तेरी
शब को यूं ही जानी है।

तुझको पाने की ख्वाहिश
हमने मन में ठानी है।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Ketan Parmar on July 12, 2013 at 3:45pm

Saadar Abhaar sweekare.

Dhanyvaad

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 11, 2013 at 10:22pm

सहज सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई श्री केतन परमार जी 

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 11, 2013 at 10:11pm

स्ंदर रचना दिल को छूती.... आ0 केतन जी बधाई ... 

Comment by Ketan Parmar on July 4, 2013 at 2:18pm

वीनस केसरी JI

Saadar Abhaar sweekare.

Dhanyvaad

Comment by Ketan Parmar on July 4, 2013 at 2:17pm

वीनस केसरी JI

Aapse ek guzarish hai ke mujhe apke nimlikhit coments ke vishay me vistaar se bataye taki main usko sudhar saku.

जो बात विद्वतजन कहते हैं उनकी ओर ध्यान दें तो ग़ज़ल दोष मुक्त हो सकती है

Comment by Ketan Parmar on July 4, 2013 at 2:13pm
Comment by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 11:26pm

मौसम की मनमानी है
सब आँखों में पानी है।

तुझको पाने की ख्वाहिश
हमने मन में ठानी है।

वाह भाई क्या कहने ... छोटी बहर पर यूँ भी कहना मुश्किल होता है मगर आपने बहुत छोटी बहर को लेकर बहुत खूबसूरत ढंग से निभाया है
मेरे ओर से बधाई स्वीकारें

जो बात विद्वतजन कहते हैं उनकी ओर ध्यान दें तो ग़ज़ल दोष मुक्त हो सकती है
मुझे व्यग्तिगत रूप से लगता है इतनी छोटी बहर पर कम से कम ९ अशआर होने चाहिए ...

जगती है आंखे तेरी
शब को यूं ही जानी है।
को
जगती है आंखे तेरी
शब तो यूं ही जानी है।  कर लें तो शायद निखार बढ़ जाए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 3, 2013 at 9:36pm

आदरणीय केतन परमार जी, छोटी बहर की प्यारी सी गज़ल के लिये बधाइयाँ...........

Comment by Ketan Parmar on July 3, 2013 at 8:53pm

Pandey  Ji Jarur Iss baat ka dhyan rakhunga main or usme jaruri badlaav karunga

Sabhi Mitro kaa bhot bhot sukriya comments ke liye.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2013 at 8:47pm

आदरणीय केतन परमार जी, आपकी ग़ज़ल अच्छी लगी. अश्आर के संयोज्य भाव प्रभावी लगे किन्तु कुछ और बेहतर आयाम समेकित किये जा सकते थे.

रुहानी शब्द का रु छोटी मात्रा का होता है जबकि रूह का रू  बड़ी मात्रा का होता है. सो दोनों अलग हैं.  आपने ग़ज़ल में  रूहानी के रु में बडी मात्रा ली है अतः अक्षरी दोष होने से मिसरा  दर्द दिया रूहानी है   के बेबह्र होने का अंदेसा बन गया है.

बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाइ्याँ.

शुभम्

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