For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रलय या आपदा [आल्हा छंद ] प्रथम प्रयास

रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार


उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई रात
कुदरत हुई खून की प्यासी, प्रलय मचा है चारों ओर
कुपित शिवा जलमग्न हो गए,आया है कलयुग घनघोर

      ..............मौलिक व अप्रकाशित...............

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sarita Bhatia on June 28, 2013 at 6:18pm

ravikar sir laazwaab 

aapne sahi kaha sarkaar jyada jimedaar hai iske liye 

Comment by Sarita Bhatia on June 28, 2013 at 6:17pm

aman kumar ji prabandhan bina prakriti ko chede bhi kiya ja sakta hai 

Comment by Sarita Bhatia on June 28, 2013 at 6:16pm

 Jitendra Pastariya ji hardik abhaar meri rachna ke sath sehmat hone ke liye 

Comment by Sumit Naithani on June 28, 2013 at 3:49pm

सुंदर प्रस्तुति 

Comment by बसंत नेमा on June 28, 2013 at 12:11pm

आज कुदरत भी बोल रही है तेरा तुझको अर्पण  क्या लागे मेरा ,,, हमने उसे जो दिया उसने बही वापस कर दिया .... बहुत सुन्दर रचना , बधाई .... 

Comment by vijay nikore on June 28, 2013 at 10:17am

आदरणीया सावित्री जी:

 

सामयिक स्थिति पर अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by रविकर on June 28, 2013 at 9:39am

बढ़िया शब्द संचयन बहना, भावों का बढ़िया सहकार |
सरिता सुन्दर पावन सरिता मचा रही है हाहाकार |
कुदरत से करते ही रहते हम सब मिलकर के खिलवार |
जनता तो कम ही दोषी है, ज्यादा दोषी है सरकार-

Comment by aman kumar on June 28, 2013 at 8:58am

दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार

सही कहा आपने ! प्रक्रति का मतलब ही है की उसमे कोई छेड़ छाड़ न हो |

पर सतत विकास के लिए प्राकेर्तिक प्रबंधन भी जरुरी है ...

आभार 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 27, 2013 at 11:59pm
"रूद्ररूप लेआएभोले ,मचाप्रलय से हाहाकार

मानवआयाकुदरत आड़े,उजड़ गएलाखोंपरिवार "...आदरणीया...सरिता जी, यह सच कहा आपने अपनी रचना में जब भी किसी प्रकार की आपदा होगी, मानव माञ को ही भोगना पड़ता है जबकि यह सभी विपदाऐं उसी मानव के स्वार्थ से उत्पन्न हो रही है...
Comment by Sarita Bhatia on June 27, 2013 at 11:23pm

केवल प्रसाद जी एवं राम शरिमोनी पाठक जी हार्दिक आभार  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service