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कुंद चाकू पर धार लगाकर

हम चाकू से छीन लेते हैं उसके हिस्से का लोहा

और लोहे का एक सीदा सादा टुकड़ा

हथियार बन जाता है

 

जमीन से पत्थर उठाकर

हम छीन लेते हैं पत्थर के हिस्से की जमीन

और इस तरह पत्थर का एक भोला भाला टुकड़ा

हथियार बन जाता है

 

लकड़ी का एक निर्दोष टुकड़ा

हथियार तब बनता है जब उसे छीला जाता है

और इस तरह छीन ली जाती है उसके हिस्से की लकड़ी

 

बारूद हथियार तब बनता है

जब उसे किसी कड़ी वस्तु में कस कर लपेटा जाता है

और इस तरह छीन ली जाती है उसके हिस्से की हवा

 

पर दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार

इन तरीकों से नहीं बनता

वो बनता है उस पदार्थ को और न्यूट्रॉन देने से

जिसके पास पहले से ही मौजूद न्यूट्रॉनों को

रखने हेतु जगह कम पड़ रही है

 

हजारों वर्षों से धरती पर मौजूद हैं छोटे हथियार

इसलिए मुझे यकीन है

दुनिया जब भी खत्म होगी

कम से कम छोटे हथियारों से तो नहीं होगी

------------------

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2013 at 8:53am
आदरणीय..धर्मेन्द्र जी, सुंदर रचना अभिव्यक्ति....शुभकामनाऐं
Comment by D P Mathur on June 22, 2013 at 7:56am

आदरणीय आपकी कविता अपने अंदाज की अनोखी रचना है,
जिसमें ज्ञान को सीख के साथ जोड़ कर अन्त में आगाह भी किया गया है,
बहुत सुन्दर , आपको बधाई !

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