For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते"

हो गये सब सर कलम कुछ रोटियों के वास्ते 
जैसे उगते हों शज़र बस आरियों के वास्ते 

दौरे वहशत पूछिए मत, बढ़ रही कैसी हवस 
है परेशां बाप अपनी बच्चियों के वास्ते 

कुछ निवाले छीन लेते हैं गरीबों से भले 
रोज़ दाना लाएं साहब मछलियों के वास्ते 

देश के रक्षक उगाते बेच कर ईमान अब 
नोट की फसलें सियासी इल्लियों के वास्ते 

दौर है रफ़्तार का, फुर्सत नहीं खुद के लिए 
व्यस्त हैं सब कागज़ी कुछ चिन्दियों के वास्ते 

मुल्क की तस्वीर से फिर साजिशी बू आ रही

खुल रहे स्कूल इंग्लिश हिंदियों के वास्ते


कोख में ही मार डालीं, बाप ने सब बच्चियाँ 
मां तरसती रह गई किलकारियों के वास्ते 

क्यूँ गुनाहों से करे तौबा कोई भी “दीप” जब

बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते

संदीप पटेल "दीप"

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2013 at 3:23pm

दीप जी आज की क्रूर व्यवस्था पे चोट करते हुए बेहतरीन ग़ज़ल आपने पेश किया है, वाह तारीफ़                                                        क़ुबूल फरमाएँ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:33am

आदरणीया गीतिका जी सादर प्रणाम 

आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन सार्थक हुआ 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:32am

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम 

आपकी सराहना हेतु आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:29am

आदरणीय धर्मेन्द्र सर जी सादर प्रणाम 

ग़ज़ल को सरहाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:29am

आदरणीय बृजेश जी सादर 

आपकी सराहना पाकर बहुत ख़ुशी मिली 

ये स्नेह यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये 

सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:28am

आदरणीय डॉ आशुतोष सर जी सादर प्रणाम 

इस उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:27am

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर 

आपकी सराहना सर आँखों 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:26am

आदरणीय वीनस जी सादर 

आपकी सराहना पाना मेरे लिए उपलब्धि है 

ये स्नेह यूँ ही बनाए रखिये 

सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:24am

आदरणीय नीरज मिश्र जी सादर आभार आपका इस सराहना हेतु 

स्नेह बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:23am

आदरणीय अभिनव सर जी सादर 

आपकी प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हुआ 

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर आभार आपका 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"वाक़िफ़ हैं नाज़नीनों की नीची-नज़र से हम दामन जला के बैठे हैं रक़्स-ए-शरर से हम सीना-सिपर हैं…"
2 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी आदरणीय अमित जी, कॉपी पेस्ट हो गए थे। फिलहाल एडिट कर तीन शेर अलग से कमेंट बॉक्स में पोस्ट कर दिए…"
21 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"तीन बोनस शेर  कितना भी दिल कहे यही बोले नजर से हम। बिल्कुल नहीं कहेंगे यूं कुछ भी अधर से…"
23 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"रे हैं आज सुब्ह ख़ुद अपनी नज़र से हम दुबके रहे थे कल जो डकैतों के डर से हम /1 मय्यत पे जो भी आए वो…"
35 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब  आपने १४ अश'आर पोस्ट किए हैं। कृपया एडिट करके इन्हें ११ कर…"
41 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"२२१ २१२१ १२२१ २१२ वाक़िफ़ हुए हैं जब से जहाँ के हुनर से हम डरने लगे हैं अपने ही दीवार-ओ-दर से हम…"
45 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"मजाहिया ग़ज़ल हालात वो नहीं हैं कि निकले भी घर से हम।आते दिखे जो यार तो निकले इधर से हम। कितना भी…"
48 minutes ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service