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तरही ग़ज़ल--आपसे मिलकर ये जाना दोस्ती क्य चीज़ है।

आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।

ख़ून  बेमक़सद  बहाये, आदमी क्या चीज़ है,

आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।

कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,

रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।

अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,

सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़ है।

खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,

ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या  चीज़ है।

खूबसूरत - खूबसूरत  सारी  दुनिया है मगर, 

मैं ते हैंराँ हूँ, मुहब्बत आपकी क्या चीज़ है। 

किस तरह पैदा किया माँ ने, समझना है यही,

तेल सरसों का निकलता है, फली क्या चीज़ है।

शब्दों का इक बाण,होठों की हंसी को छानता,

गुस्सा भी क्या चीज़ है,नाराजग़ी क्या चीज़ है।

सारी दुनियां को देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान"

शांत मन से सोचकर कहना, खुदी क्या चीज़ है।

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Comment

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Comment by सूबे सिंह सुजान on May 20, 2013 at 11:52pm

 Ashok Kumar Raktale.....आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2013 at 8:01am

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।...............वाह बहुत सही कहा है. 

सुन्दर गजल आदरणीय सुबेसिंह जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 17, 2013 at 10:32pm
आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है
अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।
ख़ून बेमक़सद बहाये, आदमी क्या चीज़ है,
आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।
धूप आई, बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,
ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।
कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,
रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।
अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,
सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़ है।
खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,
ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या चीज़ है।
खूबसूरत - खूबसूरत सारी दुनिया है मगर,
मैं ते हैंराँ हूँ, मुहब्बत आपकी क्या चीज़ है।
किस तरह पैदा किया माँ ने, समझना है यही,
तेल सरसों का निकलता है, फली क्या चीज़ है।
शब्दों का इक बाण,होठों की हंसी को छानता,
गुस्सा भी क्या चीज़ है,नाराजग़ी क्या चीज़ है।
सारी दुनियां को देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान"
शांत मन से सोचकर कहना, खुदी क्या चीज़ है।
Comment by सूबे सिंह सुजान on May 15, 2013 at 10:21pm

 वीनस केसरी.........भाई साहब आपकी विस्तृत टिप्पणी पाकर दिल खुश हुआ........आपकी बातें सही लगी..........आपने पढ कर मुझे विस्तृत जानकारी से अवगत कराया।  हां यह मिसरा वाक्य में बे-बहर है......सारी दुनियां को देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान........

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

Comment by वीनस केसरी on May 15, 2013 at 12:33am

आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।.... बहुत अच्छा मतला हुआ है भाई वाह वा ... क्या कहने


(दोस्त+ई और खुश +ई के कारण मतला एब ए इता ए खफी का शिकार हो गया है, दोस्त और खुश  हम काफिया अल्फाज़ नहीं हैं)  

ख़ून  बेमक़सद  बहाये, आदमी क्या चीज़ है,

आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।,,, अच्छा है

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।......  हिमालय का मानवीकरण बढ़िया रहा


कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,

रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।......... सानी बढ़िया है उला थोडा कमजोर लगा

अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,

सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़ है।..... एक बार फिर से उला पर सानी भारी पड़ गया

खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,

ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या  चीज़ है।...... खूब कहा  ... शुद्ध शब्द वापसी है

खूबसूरत - खूबसूरत  सारी  दुनिया है मगर, 

मैं ते हैंराँ हूँ, मुहब्बत आपकी क्या चीज़ है। ..... बहुत अच्छा शेर है क्या कहने वाह वा

किस तरह पैदा किया माँ ने, समझना है यही,

तेल सरसों का निकलता है, फली क्या चीज़ है।... बिम्ब से बात को बाँध नहीं पाए हैं, जमा नहीं

शब्दों का इक बाण,होठों की हंसी को छानता,

गुस्सा भी क्या चीज़ है,नाराजग़ी क्या चीज़ है।... उला में सानी बढ़िया बाँधा है ((((छानता की जगह काट दे रख कर देखिए


सारी दुनियां को देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान".... पूरी ग़ज़ल में यह एक मात्र मिसरा बे बहर है

शांत मन से सोचकर कहना, खुदी क्या चीज़ है। .... अच्छा शेर है ((((((( कहना की जगह लिखना रख कर देखिए

ग़ज़ल अच्छी है जो कि और अच्छी हो सकती है 
कुछ अशआर के मिसरैन में हल्की फेरबदल ग़ज़ल को और दमदार बना सकते हैं
शुभकामनाएं

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 11:30pm

Kewal Prasad...........जहाँ तक मैं समझता हूँ कि यह ठीक है..इस बहर में अन्त में एक मात्रा बढाई जा सकती है........फिर भी अगर मैं ग़लत हूँगा..तो हम ग़ज़ल के सुधीजनों से निवेदन करते हैं कि यहीं पर समाधान के रूप में हमें ग़लती की उपयुक्त जानकारी देने की कृपया करें

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 14, 2013 at 11:08pm

आ0 सूबे सिंह सुजान जी,
अपने.आपे में नहीं है अब मेरा अपना शरीर
सोचता हूँ आज मैं ये आशिकी़ क्या चीज़ है।
सारी दुनियां को देखकर फिर बैठना लिखने ‘सुजान‘
शांत मन से सोचकर कहना खुदी क्या चीज़ है।
2122, 2122, 2122, 212

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 10:44pm

 Kewal Prasad आदरँीय..........आप कृपया करके वे अशआर यहीं पर बता सकते हैं.........जिनमें वज़्न का पालन नही हुआ है..............ताकि मैं अपनी भूल..ग़लती को सुधार सकूँ....

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 10:35pm

 Saurabh Pandey..जी  क्योंकि...यह जगजीत सिंह द्वारा गाई गई मशहूर ग़ज़ल.......होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है..........का ही रदीफ लेकर लिखी गई है।।।  जिसे तरही ग़ज़ल कहा जाता है।   अर्थात    उसकी ही तरह.......

लेकिन विचार मेरे अपने ही हैं

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 14, 2013 at 10:30pm

आ0  सूबे सिंह सुजान  जी,  प्रिय मित्र, मुझे ऐसा लगा कि कुछ अश‘आर में वज्न का पालन नही हुआ है।  कहन बहुत सुन्दर। ,   सादर,

कृपया ध्यान दे...

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