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दोहा मुक्तिका: नेह निनादित नर्मदा संजीव 'सलिल'

दोहा मुक्तिका:
नेह निनादित नर्मदा
संजीव 'सलिल'
*
नेह निनादित नर्मदा, नवल निरंतर धार.
भवसागर से मुक्ति हित, प्रवहित धरा-सिंगार..

नर्तित 'सलिल'-तरंग में, बिम्बित मोहक नार.
खिलखिल हँस हर ताप हर, हर को रही पुकार..

विधि-हरि-हर तट पर करें, तप- हों भव के पार.
नाग असुर नर सुर करें, मैया की जयकार..

सघन वनों के पर्ण हैं, अनगिन बन्दनवार.
जल-थल-नभचर कर रहे, विनय करो उद्धार..

ऊषा-संध्या का दिया, तुमने रूप निखार.
तीर तुम्हारे हर दिवस, मने पर्व त्यौहार..

कर जोड़े कर रहे है, हम सविनय सत्कार.
भोग ग्रहण कर, भोग से कर दो माँ उद्धार..

'सलिल' सदा दे सदा से, सुन लो तनिक पुकार.
ज्यों की त्यों चादर रहे, कर दो भाव से पार..

* * * * *  

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on February 27, 2013 at 7:30pm

बृजेश जी, बिन्ध्येश्वरी जी, लक्ष्मण जी, राकेश जी, रविकर जी
आपकी सहृदयता हेतु आभार.
दोहा द्विपदिक सम मात्रिक छंद है जिसमें १३-११ पर यति होती है.
मुक्तिका में प्रथम दो पंक्तियों का तथा शेष पंक्तियों में हर दूसरी पंक्ति का पदांत-तुकांत एवं सभी पंक्तियों का पदभार समान होता है. मुक्तिका में सब पदों की लय एक सी होती है.
मुक्तक या चौपदा चार पंक्तियों का सममात्रिक छंद है. जिसमें बहुधा प्रथम, द्वितीय व चतुर्थ पद का तुकांत समान होता है.  कभी-कभी कवि पहली-दूसरी व तीसरी चौथी पंक्ति का तुक सम होता है.

Comment by रविकर on February 27, 2013 at 4:42pm

बहुत बढ़िया -
शुभकामनायें आदरणीय ||

Comment by राजेश 'मृदु' on February 27, 2013 at 3:20pm

बहुत ही उम्‍दा रचना, भावभूमि, सबकुछ आचार्यजी के अनुकूल, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 27, 2013 at 10:54am

बहुत सुन्दर सनातनी दोहे, हार्दिक बधाई स्वीकारे आदरणीय संजीव सलिल जी,हां एक जिज्ञासा है - 

दोहे और दोहा मुक्तिका में क्या अंतर है और  क्या दोहे मुक्तक भी होते है (चार पंक्तियों में) ?
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 27, 2013 at 10:37am
आदरणीय आचार्यवर बहुत संदर दोहा मुक्तिका है।हार्दिक बधाई।
कुछेक स्थानों पक टंकणगत त्रुटि हो गयी है गुरुदेव।
Comment by बृजेश नीरज on February 27, 2013 at 9:48am

आदरणीय, आप तो महारथी हैं इस क्षेत्र के। बधाई स्वीकार करें।
सादर!

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