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ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण//डॉ प्राची

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

गुलशन उजड़ने से

सहमीं हैं कलियाँ,

पंखों को सिमटाये

दुबकी तितलियाँ,

कर्कश सा चिल्लाये भंवरा क्यों हर क्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

बुझी दीप की लौ

है फैला अँधेरा,

प्रज्ञा को तम के

कलुष नें है घेरा,

खिले फिर से रश्मि करे तम का भक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

कैसे हुआ वक़्त

इतना विषैला,

क्यों कर हुआ है

मनस इतना मैला,

कैसे करें आज कलियों का रक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

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Comment by Shyam Narain Verma on December 31, 2012 at 11:54am

BAHOT KHOOB.......................

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 31, 2012 at 8:55am

बुझी दीप की लौ

है फैला अँधेरा,

प्रज्ञा को तम के

कलुष नें है घेरा,

खिले फिर से रश्मि

करे तम का भक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

आदरेया डॉ. प्राची जी सादर,सच है और अब नव वर्ष आने वाला है तब खिले फिरसे रश्मि करे तम का भक्षण बिलकुल ठीक पंक्ति है. सुन्दर रचना और आने वाले नव वर्ष पर आपको बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 31, 2012 at 7:08am

डॉ. प्राची जी, आपको नमन और दामिनी को श्रद्धांजलि!

Comment by shalini kaushik on December 30, 2012 at 8:45pm

बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति

कृपया ध्यान दे...

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