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हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,
अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.


पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,
जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.


मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ,
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही.


सावन में मिट्टी की खुशबू उनके लिए है,
जिनके घरो से होके बहता नाला नहीं.


गुटखा बेचने के लिए ट्रेनो में घूमता है,
दूध के दांत टूटे नहीं, होश संभाला नहीं.


सर झुका के भजने लिखूंगा, अगर,
सबको रोटी की फ़रियाद, टाला नहीं.


मदहोशी के कसीदो में वो कहाँ है?
जिनके आंसू में 'अम्ल' है, हाला नहीं.

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Comment by वीनस केसरी on March 2, 2012 at 11:41pm

सुन्दर प्रयास है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2012 at 11:08pm

बेहतर प्रयास है, राकेशजी. बहुत-बहुत बधाई.

 

निवेदन : धूप लगा करती है.

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2012 at 9:31pm

बहुत बहुत असरदार ग़ज़ल -

पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,
जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.


मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ,
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही

उक्त दो शेर बहुत बढ़िया लगे हार्दिक बधाई आपको !!

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 7:42pm

Thanks Ashutosh ji.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 12:48pm

माननीया राजेश कुमारी जी, आपकी सराहना ही कलम का जोर है, इसे बनाये रक्खे, धन्यवाद. 

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 12:46pm

मान्यवर वाहिद जी, आपकी प्रशंसा सर आँखों पर.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 12:45pm

आदरणीय प्रदीप जी,सदर नमस्कार, बस यूँ ही आशीर्वाद बनाये रहिये. 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 11:37am

लाजवाब ग़ज़ल राकेश जी| आपकी प्रशंसा के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 11:33am

baut samyik samaj ki kroor sachchaai par prakash dalti hui ghazal bahut umda.badhaai sweekaren.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 2, 2012 at 11:24am

मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ, 
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही.

sundar bhav, badhai.

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