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ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में) // रवि प्रकाश

ग़ज़ल (पुराने अंदाज़ में)
बहर-SSSSSSSSSSS

जीवन का एकाकीपन मिट जावेगा
आन मिलेंगे पी तो मन इतरावेगा।
  आ जावेंगे बिछुड़े संगी-साथी भी
  कौन कहाँ लौं मन ऐसे तरसावेगा।
जब निरखेंगे नैन किसी के नेह भरे
झूलों का मौसम फिर से फिर आवेगा।
  परसेगा कब तक शून्य हमारी निद्रा
  अब तो कोई सपना दर खटकावेगा।
मन हुलसेगा सावन के पहले घन सा
झूमेगा,हर ओर सुधा बरसावेगा।
  खो देंगे हम भी उस पल सारी निजता
  रंग किसी का जब हस्ती पे छावेगा।
जी ही जी में नित्य खिलाया जिसको वो
पुष्प हमारे उपवन को महकावेगा।
  प्राण-प्रतिष्ठा होगी सूने मंदिर में
  पूजन-अर्चन का दीपक जल जावेगा।
आँखों में सब बाँचेगा वो मनभावन
वाणी का यह कोष धरा रह जावेगा।
  छँट जावेंगे आप उदासी के बादल
  वो मीठी बातों से जी बहलावेगा।
हाल हमारे जी का यूँ होगा बिरला
मूरख सब खोकर भी सब पा जावेगा।
-14.08.2016
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by Ravi Prakash on November 29, 2016 at 4:21pm
धन्यवाद आदरणीय भंडारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2016 at 7:22pm

आदरणीय रवि भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Ravi Prakash on November 26, 2016 at 11:09am
बहुत बहुत शुक्रिया समर कबीर जी।
Comment by Samar kabeer on November 26, 2016 at 10:29am
जनाब रवि प्रकाश जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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