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मुक्तिका: ...आँख का पानी. ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

आँख का पानी

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आजकल दुर्लभ हुआ है आँख का पानी.
बंद पिंजरे का सुआ है आँख का पानी..

शिलाओं को खोदकर नाखून टूटे हैं..
आस का सूखा कुंआ है आँख का पानी..

द्रौपदी को मिल गया है यह बिना माँगे.
धर्मराजों का जुआ है आँख का पानी..

मेमने को जिबह करता शेर जब चाहे.
बिना कारण का खुआ है आँख का पानी..

हजारों की मौत भी उनको सियासत है.
देख बिन बोले चुआ है आँख का पानी..

किया मुजरा, मिला नजराना न तो बोले-
जहन्नुम जाए मुआ! है आँख का पानी..

देवकी राधा यशोदा कभी विदुरानी.
रुक्मिणी कुंती बुआ है आँख का पानी..

देख चन्दा याद आतीं रोटियाँ जिनको
दिखे सूरज में पुआ है आँख का पानी..

भजन प्रवचन सबद साखी साधना बानी
'सलिल' पुरखों की दुआ है आँख का पानी..

*******************************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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Comment by Admin on June 24, 2010 at 8:06am
हजारों की मौत भी उनको सियासत है.
देख बिन बोले चुआ है आँख का पानी..

जबरदस्त लिखे है आचार्य जी , बहुत ही सुंदर रचना , अब तो आँख का पानी मिलना मुश्किल हो गया है समय के साथ लोगो के आँखों से पानी सूखता जा रहा है, बहुत खुबसूरत शब्दों का प्रयोग कर अच्छी मुक्तिका लिखे है , बधाई स्वीकार करे आचार्य जी |
Comment by Pallav Pancholi on June 24, 2010 at 1:37am
द्रौपदी को मिल गया है यह बिना माँगे.
धर्मराजों का जुआ है आँख का पानी..

sir bahut khoob likha hai badhai sweekaar karain

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