For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल- इश्क़ की राहों में

2122 2122 212


इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।
हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।

क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।
साथ उसके गर न हो परछाइयाँ।।

ऐ खवातीनों सुनों मेरा कहा।
क्यूँ जलाती हो दिखा अँगड़ाइयाँ।।

चाहता हूं डूबना आगोश में।
ऐ समंदर तू दिखा गहराइयाँ।।

दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?
रात भर बजती रही शहनाइयाँ।।

तुम गये तो जिंदगी तारीक है।
हो गयी दुश्मन सी अब रानाइयाँ।।

दूर हो जाये जड़ों से ये पवन।
ऐ खुदा इतनी न दे ऊँचाइयाँ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

बशर= आदमी
तारीक= अंधकारमय

Views: 1794

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ पवन मिश्र on September 13, 2016 at 10:20am

बहुत बहुत आभार आदरणीया कान्ता जी

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 3:03pm
दूर हो जाये जड़ों से ये पवन।
ऐ खुदा इतनी न दे ऊँचाइयाँ....... वाह! वाह! बेहतरीन गजल कही है आपने आदरणीय पवन जी।
Comment by डॉ पवन मिश्र on September 2, 2016 at 7:58pm
आदरणीय समर साहब।। बहुत बहुत शुक्रिया। आपके स्नेह से अभिभूत हूं। ग़ज़ल लिखना बस शुरू ही किया है। आप का मार्गदर्शन अपेक्षित है। आपकी सलाह के अनुसार सुधार का प्रयास करते हैं। आभार
Comment by डॉ पवन मिश्र on September 2, 2016 at 7:52pm
आदरणीय गिरिराज जी, बहुत बहुत आभार आपका। आशय था ही यह कि धूप में रहने वाली परछाईं भी जब धूप में साथ न् दे तो इस कदर अकेला हुआ इंसान क्या करे।
Comment by Samar kabeer on September 2, 2016 at 4:16pm
जनाब डॉ.पवन जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे शैर के ऊला मिसरे में आपने लफ़्ज़ "खवातीनों"लिया है जो ग़लत है,'खातून'शब्द का बहुवचन "खवातीन"होता है न कि "खवातीनों"देखियेग ।
जनाब गिरिराज भंडारी जी की बात पर भी विचार कीजियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2016 at 9:56am

आदरनीय पवन भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही आपने , दिली बधाइयाँ स्वीका करें ।
एक शेर से सहमत नही हो पा रहा हूँ , आप भी एक बार सोचियेगा , वैसे किसी की सहमति कथ्य पर ज़रूरी नही है , वस मुझे वास्तविकता से परे लग रही है बात --

क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।
साथ उसके गर न हो परछाइयाँ।।        परछाइयाँ धूप मे तो रहतीं ही हैं , हाँ छाया मे ज़रूर साथ छोड़ देती है -- तो क्या ऐसा कहना उचित नही होगा --

क्या करे तन्हा बशर फिर छाँव् में।
साथ उसके गर न हो परछाइयाँ।।   या - छोड़ दीं है साथ भी परछाइयाँ

   -- बस यूँ ही एक सलाह है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
19 hours ago
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाई, ओबीओ की परम्परा का क्या ही सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है आपने ! जय…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा है। सादर"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मेरे कहे को मान देने और अनुमोदन हेतु आभार। सादर"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service