For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ....!!!

हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ,
जिसने हिला के रख दिया ,पूरे ब्रह्माण्ड को ॥

भोपाल मे इंसानी लाशों के, अम्बार लगे थे ,
बुझ गए जीवन दिए जो, अभी-अभी जगे थे ॥

कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,
जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥

जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,
खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥

सालों बाद स्मृत पटल पर, यादें धुंधली नही हुई हैं ,
भयावह मंजर से अब भी '' उसकी आँखें खुली हुई हैं''॥

इन्हें न्याय की दहलीज से,बस तिरस्कार मिला ,
कैसे -कैसे मिली हमदर्दी ,कैसा ''राज-सत्कार मिला ॥

कौन सहलाये इन मजलूमों की ,तन मन की चोटों को ,
गिनने मे रहीं व्यस्त -सरकारे ,लाशों और वोटों को ॥

सब दलों के नेता देख रहे हैं ,इसे राजनीति के दर्शन मे ,
जब की कोई फर्क नही है ''अफजल ''कसाब 'और ANDERSON मे ॥

अगर ''कमलेश '' नही न्याय -सुरक्षा पूरा सरकार करेगी ,
क्या फिर कहीं दूसरे, भोपाल -कांड का इंतजार करेगी ॥

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 24, 2010 at 9:06pm
AAPKI HAUSLA AFJAYEE KE LIYE KAMLESH ..DIL SE MASKOOR HAI ...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 16, 2010 at 7:27pm
सालों बाद स्मृत पटल पर, यादें धुंधली नही हुई हैं ,
भयावह मंजर से अब भी '' उसकी आँखें खुली हुई हैं''॥

कमलेश भईया आपने तो कलम तोड़ रचना लिख डाला है, झकझोर के रख दिया है, पूरा मंज़र आखो के सामने दिखने लग रहा है, बहुत बढ़िया रचना, बधाई आपको,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 16, 2010 at 6:31pm
भोपाल गैस त्रासदी, न्याय दिलवाओ, एंडरसन को बुलाओ, कहाँ गए अर्जुन सिंह?........................अनगिनत सवालात........ऐसा लगता है सब को यही उम्मीद थी की एंडरसन खुद ब खुद आके बोलेगा लो भैया हम आ गए है.....अब दे दो हमें सजा............सबको यही उम्मीद थी की न्यायालय कुछ...... उम्र कैद............... या..................२५-३० साल की कैद...............या फांसी जैसी सजा सुनाएगा.... अब नहीं हुआ तो विरोध कर रहे हैं. यह तो सब को पहले से ही पता था की ना तो हम एंडरसन को वापस ला सकते हैं और ना ही कमज़ोर धाराओं के चलते कोर्ट कोई कड़ी सजा सुना सकता है..................२६ सालों से शांत पड़े मीडिया और सरकार को अब होश आ रहा है..... जैसे कि सब कुछ परदे के पीछे हो रहा हो ........................................................................................................................... भाई साहब ये हिंदुस्तान है जब सांप निकल जाता है तब लाठी पीटने की हमारी पुरानी आदत है...अब वह तो हम बदल नहीं सकते हैं.......................... संसद में एक और भोपाल कि तैयारी हो चुकी है ................(Nuclear accident civil liability bill) सिविल लायबिलिटी बिल लाने को सरकार पूरी तरह तैयार बैठी है...............भैया अब चाहे गैस सूंघ के मरो या रेडियेशन से मरो ...........मरना तो हमको ही है......................
Comment by Admin on June 16, 2010 at 4:24pm
कौन सहलाये इन मजलूमों की ,तन मन की चोटों को ,
गिनने मे रहीं व्यस्त -सरकारे ,लाशों और वोटों को ॥

कमलेश जी, आप बिलकुल दुरुस्त फ़रमा रहे है, ये तो असंवेदनशीलता की परकाष्ठा है, चाहे कोई भी दुर्घटना हो, सरकार केवल राजनितिक लाभ हानि के चश्मे से प्रत्येक घटना को देखती है, अभी हाल मे हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना इसका गवाह है, जितने लोग उतने किस्म का बयान , हद है भाई, कोई सच बोलना नहीं चाहता , सभी अपना अपना दामन बचाने मे लगे हुये है ,
पुरी की पुरी कविता दर्द से भरी हुई है, आप जो कहना चाहते है वो यह कविता चीत्कार कर रही है, बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति है, पूरे शरीर को झंकृत कर दे रही है, इस रचना पर बधाई स्वीकार करे,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 16, 2010 at 3:23pm
बहुत ही मार्मिक शब्दाभिव्यक्ति है कमलेश जी ! भोपाल की छलनी हो चुकी आत्मा का बहुत ही हृदय विदारक चित्रण है ! आज इतने भी बरसों के बाद भी हजारों प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में मुँह बाये खडे हैं ! इस सारगर्भित रचना के लिए आप बधाई के पात्र हैं !
Comment by satish mapatpuri on June 16, 2010 at 12:50pm
कौन सहलाये इन मजलूमों की ,तन मन की चोटों को ,
गिनने मे रहीं व्यस्त -सरकारे ,लाशों और वोटों को ॥
आपकी चिंता वाजिब है कमलेश जी, दिल को झकझोर देने वाली है आपकी यह रचना, धन्यवाद.
Comment by दुष्यंत सेवक on June 16, 2010 at 11:52am
nishchay hi ankhe khol dene wali rachna hai, bhopal kaand hamari vyavastha ki nangai aur gori chamdi ke aage hamare ghutne tekne ki hamari aadatan bhayavah beemari ki jwalant misal hai. kahte hai ki gadhe murde ukhadane se kuch nahi hota lekin is vishay me poore bharat me yah aag lagi hai ki gadhe murde ukhade jayen aur nyay ki aas paale baithe prabhaviton ko shighra uchit "nyay" mile......ek sarthak rachna ke liye badhai aur dhanyavaad

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
29 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
23 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service