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ग़ज़ल : जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २

 

चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं

जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं

 

कहते हैं वो हर बेघर को घर देंगे

जो कितने संसार जलाकर बैठे हैं

 

उनकी तो हर बात सियासी होगी ही

यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?

 

दम घुटने से रूह मर चुकी है अपनी

मुँह उसका इस कदर दबाकर बैठे हैं

 

रब क्यूँकर ख़ुश होगा इंसाँ से, उसपर

हम फूलों की लाश चढ़ाकर बैठे हैं

------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 26, 2015 at 10:13am
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय गिरिराज जी।

आदरणीय रूह तो अपनी है पर रूह का मुँह तो उसी का है न। इस हिसाब से ये ठीक ही लग रहा है।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 26, 2015 at 10:10am
बहुत बहुत शुक्रिया जान गोरखपुरी साहब
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2015 at 11:40am
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय मिथिलेश जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2015 at 11:39am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2015 at 11:38am
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2015 at 11:38am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2015 at 11:38am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अमोद जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2015 at 11:29am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2015 at 6:58am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , क्या खूब गज़ल हुई है . हर शे र लाजवाब हैं , मतले तो कहना ही क्या , वाह !

चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं

जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं  -- हार्दिक बधाइयाँ ।

आदरनीय चौथे शे र के उला मे , अपना और सानी मे , उसका - सही है क्या ?

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 22, 2015 at 10:19pm

उनकी तो हर बात सियासी होगी ही

यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?

क्या बात! है आ० धर्मेन्द्र जी! हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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