For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“आप को अपनी पत्नी की आत्महत्या के लिए गिरफ्तार किया जाता है.”

“इंस्पेक्टर साहब ! मेरी बात सुनिए. मैं बेकसूर है. वह मुझ से इजाजत ले कर अपने पूर्व प्रेमी यानि पति के पास गई थी.”

“मैं कुछ नहीं जानता. वह अपने ‘सुसाइड नोट’ में लिख कर गई है कि मैं अपने पति के धोखे की वजह से आत्महत्या कर रही हूँ. इसलिए अब जो कुछ कहना है कोर्ट में कहना.” कह कर इंस्पेक्टर ने हाथ में हथकड़ी लगा दी.

यह देख पति की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, “ वाह ! तू मुझ से इजाजत ले कर अपने हिस्से का उजाला ढ़ूंढ़ने गई थी और तूने अपने साथ साथ मेरी जिन्दगी में भी अँधेरा कर दिया.” कहते ही वह चीख उठा.

                                      ------------------

(मौलिक व अप्रकाशित )

०२/०९/२०१५  

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Omprakash Kshatriya on September 4, 2015 at 7:42am

आदरणीय  सौरभ पाण्डेय जी. आप की बात १०० प्रतिशत सही है. जब मैंने दोबारा यह लघुकथा पढ़ी तो लगा एक अनजान आदमी इसे पढ़ कर उलझन में पड़  सकता है. इसलिए इस में मामूली  संशोधन किया है. शायद अब यह अपने मकसद को स्पष्ट करने में सफल हो जाए.

आप से निवेदन है कि एक बार फिर इसे पढ़ कर देखिएगा कि बात बनी या नहीं. आप से यही निवेदन है.

लघुकथा- अंधा 

“आप को अपनी पत्नी की आत्महत्या के लिए गिरफ्तार किया जाता है.”

“इंस्पेक्टर साहब ! मेरी बात सुनिए. मैं बेकसूर है. वह मुझ से इजाजत ले कर अपने पूर्व प्रेमी यानि पति के पास गई थी. जिस से उस ने मातापिता से छुप कर शादी की थी .”

" कौन वह रोहित ?"

" हाँ इंस्पेक्टर साहब."

" वह तो शादीशुदा है और इस बारे में कुछ नहीं जानता है. फिर दूसरी बात आप की पत्नी  एक ‘सुसाइड नोट’ लिख कर गई है कि मैं अपने पति के धोखे की वजह से आत्महत्या कर रही हूँ. इसलिए मजबूरन मुझे आप को गिरफ्तार करना पड़ेगा. अब जो कुछ कहना है कोर्ट में कहना.” कह कर इंस्पेक्टर ने हाथ में हथकड़ी लगा दी.

यह देख पति की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, “ वाह ! तू मुझ से इजाजत ले कर अपने हिस्से का उजाला ढ़ूंढ़ने गई थी और तूने अपने साथ साथ मेरी जिन्दगी में भी अँधेरा कर दिया.” कहते ही वह चीख उठा.

Comment by Omprakash Kshatriya on September 4, 2015 at 7:25am

आदरणीय कांता  जी आप ने जिस तरह इस की समीक्षात्मक टिपण्णी की है उस के लिए आप का तहेदिल  से आभार .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2015 at 12:01am

भावनात्मक स्तर पर यह लघुकथा बहुत प्रभावी बन पड़ी है, आदरणीय ओमप्रकाश जी, लेकिन जिस तरह का विन्यास इसे मिला है, उस कारण यह तार्किक रूप से लसर जाती लगी. लगा, अभी इस प्रस्तुति पर और काम होना बाकी था. साथ ही, सोच की दृष्टि से भी इसे थोड़ा और समय मिलना था.  अन्यथा इन्सपेक्टर को कोर्ट से बेतुकी फटकार मिलनी तय है. 

देखिये -- 

//“इंस्पेक्टर साहब ! मेरी बात सुनिए. मैं बेकसूर है. वह मुझ से इजाजत ले कर अपने पूर्व प्रेमी यानि पति के पास गई थी.”//

उपर्युक्त पंक्ति में पूर्व पति ने साफ़ कहा है कि वह औरत उसकी इजाज़त से  ही अपने वर्तमान पति के पास चली गयी थी. उस स्थिति में ’पति’ का अर्थ वर्तमान पति होगा, नकि पूर्व पति. अतः उस इन्स्पेक्टर का यह कहना -- “आप को अपनी पत्नी की आत्महत्या के लिए गिरफ्तार किया जाता है.”  किसी तौर पर तार्किक नहीं लगता.  

उस इन्स्पेक्टर का आगे कुछ भी कहना, जैसे - “मैं कुछ नहीं जानता. वह अपने ‘सुसाइड नोट’ में लिख कर गई है कि मैं अपने पति के धोखे की वजह से आत्महत्या कर रही हूँ. इसलिए अब जो कुछ कहना है कोर्ट में कहना.”  किसी तौर पर प्रभावित नहीं करता, अलबत्ता, उस इन्स्पेक्टर की यह बचकानी हरकत लगती है. ऐसा मुझे लगा.

फिर उस ’बेचारे’ की आँखों के आगे अँधेरा आदि का आना तथ्यहीन सा हो जाता है. 

क्या पूर्व पति ने यों ही उसे प्रेमी-पति के पास जाने दिया ? यदि ऐसा है तो फिर प्रेमी के लिए पति शब्द (संज्ञा) नहीं लगना था न ?

कहने का तात्पर्य यह है, आदरणीय. कि जो कुछ कहना था वह उभर कर सामने नहीं आ पाया है. या मुझे ही समझने में भूल हो रही है. 

सादर

पुनश्च : सही शब्द अंधा है नकि अँधा. 

Comment by kanta roy on September 3, 2015 at 10:34pm

इस कथा में एक अजीब सी हालातों को पेश किया गया है । जहाँ पति अपनी पत्नी की खुशी के लिए पूर्व प्रेमी उर्फ पति को दे देता है और पत्नी वहाँ सुखी नहीं हो पाती है और वर्तमान पति को सुसाईड नोट पर उसके मौत के जिम्मेदार होने को लिख कर मर जाती है लेकिन कानूनी तौर पर वर्तमान पति साफ साफ बच निकलता है और बेगुनाह को हथकड़ी लगती हैै । ऐसी परिस्थितियाँ आज के वर्तमान में घटित होती सुनाई पडती है । दुखद प्रसंग को उकेरने में आप आदरणीय ओमप्रकाश जी सफल रहे है । सच पूछिए तो कथा के इस प्लाॅट ने मुझे बडा प्रभावित किया है । पढ़ने के बाद देर तक इसके वातावरण ने प्रभाव बनाए रखा । हालांकि ये कथा और भी बेहतर ततैये के डंक जैसा कुछ जैसा कि सर जी अक्सर कहा करते है बन सकता था । आभार

Comment by Omprakash Kshatriya on September 3, 2015 at 6:07pm
आ गोविन्द पंडित जी आप को लघुकथा अच्छी लगी
। इस से लघुकथा का मन बढ़ गया । शुक्रिया आप का ।
Comment by Omprakash Kshatriya on September 3, 2015 at 6:04pm
आदरणीय मिथिलेश जी आप के लघुकथा के बढ़िया कहने पर मन को को शांति न्ति मिलती है । आभार आप का ।
Comment by Govind pandit 'swapnadarshi' on September 3, 2015 at 5:43pm

आ. ओमप्रकाश सर, काफी अच्छी प्रस्तुति. “ वाह ! तू मुझ से इजाजत ले कर अपने हिस्से का उजाला ढ़ूंढ़ने गई थी और तूने अपने साथ साथ मेरी जिन्दगी में भी अँधेरा कर दिया.” बेहद मार्मिक पंक्ति लगी.बहुत-बहुत बधाई. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 5:39pm

बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी

Comment by Omprakash Kshatriya on September 3, 2015 at 8:53am
आ जितेंद्र जी आप की समीक्षात्मक टिपण्णी के लिए दिल से शुक्रिया ।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2015 at 9:30pm

अच्छी लघुकथा ,आदरणीय ओमप्रकाश जी. आज बस यही सब कुछ हो रहा है.हमारे समाज और संविधान में  स्वतंत्रता का भी दायरा बना हुआ है. जहाँ जिम्मेदारियों को संभालना ही पड़ता है. अब आगे जिसे जैसा लगे ,कर जाता है जिसे भोगना है तो बस भोगना है. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service