For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले ( इस्लाही ग़ज़ल )

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,

जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |

हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले |

तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,
पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |

किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,
उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |

जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले |


हर्ष महाजन

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on July 29, 2015 at 5:11pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ग़ज़ल आपको पसंदी आयी तो यकीन जानिये मुझे बहुत सकूं मिला और मेहनत वसूल हो गयी मुझे खुद को ये ग़ज़ल बहुत पसंद आई तो खुद यकीन नहीं था | इसके साथ सबसे पहले तो किन शब्दों से आपकी कलम पर मैं दाद दूं सच में आपकी कलम में कमाल का हुस्न छिपा है शब्दों के शतरंजी चाल से ग़ज़ल की खूबसूरती पर चार चाँद लग जाते हैं इन दो तीन गजलों में आपसे और समर जी से बहुत कुछ सीखा है..और आपको विश्वास दिलाता हूँ  आपकी साहित्यक देख रेख व्यर्थ नहीं जाने दूंगा ...उम्मीद है आपका हाथ  इसी तरह बना रहेगा और मेरी गलतियों का अहसास करवाते रहेंगे .....शुकिया लफ्ज़ यहाँ मुझे अब बे-मानी सा लगने लगा है...शब्दों से खाली हूँ लेकिन ज़हन दिल से आपको और आपकी कलम को सलाम करता है |..शुक्रिया !!

साभार

हर्ष महाजन
सर एक बात क्या मैं अपनी ये ग़ज़लें जो मैं यहाँ पोस्ट कर चूका हूँ.....अब अपने निजी ब्लाग पर लगा सकता हूँ ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 29, 2015 at 1:46pm

आदरणीय हर्ष जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ..ग़ालिब की जमीन पर बह्र -ए-हजज़ को खूब निभाया है ...शेर दर शेर दाद हाज़िर है- 

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,

जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |..बहुत बढ़िया मतला हुआ है 

ये दिल में गम हजारों हैं, ये मुझको राख ना कर दें , ................... हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें  (ये दिल में गम में व्याकरण त्रुटी है इस दिल में गम हजारों है सही होगा .
कहीं बहती हुई आँखों से, नदिया बन न हम निकलें | .............. कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले  (नदिया बन का वज्न 222 होगा इसलिए या तो कि नदिया बन करना होगा या मिसरा बदलना होगा. जब नदी का प्रयोग करना है तो बहती आँख कहना उचित नहीं है )

तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,......... तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,
दराजों में पुराने ख़त अभी तक सब हैं नम निकले | .............. पुराने ख़त दराजों से जो निकले है तो नम निकले /पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले...............बहुत ही शानदार शेर हुआ है 

कि खुद को खो चुका हूँ मैं, ये उनकी जुस्तजू करके,.............. किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,
कहीं ये बेरुखी उनकी मेरा गम बन न दम निकले |.................उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले /उधर थी बेरुखी उनकी इधर हम खुशफहम निकले ................. बढ़िया शेर है ...इस्लाह बस अभ्यास के क्रम में 

मेरे जख्मों भरे सीने में अब तो जगह कहाँ है ‘हर्ष’,........... जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में 
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले | 

बढ़िया मक्ता है 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by Harash Mahajan on July 29, 2015 at 1:20pm

 आदर्नीय Ravi Shukla जी आदाब | इस ग़ज़ल पर दाद के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया | आपकी राय के मुताबिक एक कोशिश की है ..मकते को खारिज कर मिश्रा-ए-ऊला बदला है और आखिरी शेर कुछ यूँ हुआ है ...सुधीजनों से गुजारिश की क्या ये जुड़ने लायक हुआ या अभी भी तब्दीली की गुनायीश है ?

"मेरा ज़ख्मों भरा सीना यहाँ खुद ज़ुल्म कहता है,
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले |"


रवि शुक्ला जी आपका बहुत बहुत आभार उम्मीद है आप इसी तरह उत्साह देते रहेंगे | साभार !!

Comment by Ravi Shukla on July 29, 2015 at 10:57am

आरणीय हर्ष भाई

मकते के मिसरा ए उला में थोड़ी बेहतरी की गुंजाईश है

गजल के लिये दाद कुबुल कीजिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय रिचा जी बधाई स्वीकार करें"
25 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय मिथिलेश जी बधाई स्वीकारें"
26 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इस ज़र्रा नवाज़ी का सहृदय शुक्रिया आदरणीय धामी सर"
30 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इस ज़र्रा नवाज़ी का सहृदय शुक्रिया आदरणीय"
31 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपके मंच के बेहद महान आदरणीय सदस्य सौरभ जी में ये अहं नहीं तो और क्या है_ 1  समर साहब से तीन…"
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आभार। इंगित मिसरे पर…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई आजी तमाम जी , सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बेहद दिलकश ग़ज़ल ! शानदार! ढेरो दाद।"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"//आपको फिलहाल कोई ऐसी किताब पढ़नी चाहिए जो आपका अहं कम कर सके//  आज़ी तमाम महोदय ! इस…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"//उसकी तारीफ़ में जो कुछ भी ज़ुबां मेरी कहेउसको दरिया-ए-मुहब्बत की रवानी लिखना// वाह! नयापन है इस…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ! अच्छी ग़ज़ल से मुशाइरा आरंभ किया आपने। बहुत बधाई! // यूँ वसीयत में तो बेटी…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"हर कहानी को कई रूप रुहानी लिखना जाविया दे कहीं हर बात नूरानी लिखना मौलवी हो या वो मुल्ला कहीं…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service