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प्रयास के अनुमोदन के लिए आभार आदरणीय सौरभ सर
लघुकथा विधा में बहुत कमज़ोर अभ्यासी हूँ इसलिए अवसर का लाभ ले लिया.
कहानी का लघुकथा में परिवर्तन अच्छा प्रयास लगा, आ. मिथिलेश जी..
शुभ-शुभ
"सातवां फेरा सम्पन्न हुआ, माता पिता वर-वधू को को आशीर्वाद देने के लिये आगे आये।"
"नही पंडितजी। अभी एक फेरा बाकी है, आठवां फेरा।"
"ये क्या कह रहे है आप? सभी जानते है कि हमारे शास्त्रों मे भी सात फेरो का ही प्रावधान है।"
"यहाँ सभी उपस्थित परिचितो और अथितिगणो! देखिये, मैं चाहता हूँ कि मेरा बेटा और उसकी होने वाली पत्नि, आज सात फेरो के सातो वचनो के साथ एक और वचन, अपने आंगन में भ्रूण हत्या के घोर अपराध को न करने का वचन ले। बस यही है इनका आठवां फेरा।"
"लेकिन महोदय अतीत में ऐसा कभी नही हुआ। देवताओ के विवाह, यहाँ तक कि प्रभु राम का विवाह भी सात फेरो से ही सम्पन्न हुआ।"
"लेकिन उस युग में 'देवी' को आने से पहले ही जीवन-मुक्त भी नही किया जाता था"
"प्रधान जी, एक आप के ऐसा करने से तो समाज नही बदल रहा ना।"
"जानता हूँ सदियो की परम्परा एक दम से नही टूटेगी।लेकिन आज मेरे आंगन से एक नई शुरूआत तो हो सकती है ना।"
"हूँह.....तो अब देर किस बात की है प्रधानजी। शुभ मूहर्त निकला जा रहा है आइये करते है नयी शुरूआत।"
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आदरणीय वीरेन्द्र वीरजी, एक विचार आया कि इस कथा को संवाद शैली की एक बेहतरीन लघुकथा में भी बदल सकते है. बस यूं ही अभ्यास के क्रम में...... आपको इस सकारात्मक और बेहतरीन प्रस्तुति पर बधाई
कहानी की सकारात्मकता आश्वस्त करती है, आदरणीय वीरेन्द्र वीरजी. अच्छी कहानी के लिए बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.
बहुत ही सार्थक रचना बधाई भाई वीरेन्द्र वीर मेहता जी!
आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी कथा पर सकारत्मक प्रतिक्रिया देने और उत्साह देने के लिए आप का दिल से आभार ...
आदरणीय विरेन्द्र जी,
युवा जोश को अगर बुहुर्ग का साथ मिलता है तो किसी काम के पूर्ण होने में लेश मात्र भी श्ंका नहीं होती है. परिपाटियां इसी तरह बदलती हैं. सुन्दर कथा तथा विचार.
सादर.
आदरणीय सोमेश कुमार भाई जी हौसला अफजाई के लिए आप का दिल से शुक्रिया....
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