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ग़ज़ल: खोह घाटी का सफर ....

२१२२   २१२२  २१२२ २१२२ 
कामयाबी रंग लाये  तब  जमाना पास आये |

रंज  बैरी भूल   जाये  हाथ थामे  रास  आये |

पात ना आये अगर डाली कहीं  सूखी हुई  हो  , 

फूल डाली पर खिले जैसे  नजारा खास आये |

हार कर  मायूस होना ये कहाँ का  हौसला  है ,

चाह मंजिल की अगर हो  जीत खुद ही पास आये | 

जले गा जब  दीप तो होगा  उजाला घर नगर में ,

तोड़ नफ़रत की दिवारें तब  पड़ोसी पास आये | 

राह हो  आसान तो  कोई  गुजर जाये   खुशी से ,

खोह घाटी का सफर वर्मा किसे अब  रास आये |

.

श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 704

Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on March 5, 2015 at 10:01am

 आदरणीय गिरिराज जी और वंदना जी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by vandana on March 4, 2015 at 8:50pm

पात ना आये अगर डाली कहीं  सूखी हुई  हो  , 

फूल डाली पर खिले जैसे  नजारा खास आये |

हार कर  मायूस होना ये कहाँ का  हौसला  है ,

चाह मंजिल की अगर हो  जीत खुद ही पास आये | 

वाह बहुत खूब आदरणीय श्याम जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 4, 2015 at 4:56pm

आदरणीय श्याम नारयण भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

हार कर  मायूस होना ये कहाँ का  हौसला  है ,

चाह मंजिल की अगर हो  जीत खुद ही पास आये |   -- लाजवाब बात कही , भाई जी आपको बहुत बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2015 at 3:06pm

आदरणीय गुमनाम जी , हरी प्रकाश जी , मिथिलेश जी , उमेश जी , डॉक्टर विजय शंकर जी , खुर्शीद जी , कृष्ण मिश्र जी और परी जी सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |

मिथिलेश जी सही राय देने के लिए आप का बहुत बहुत आभार |

सादर .....

Comment by Pari M Shlok on March 4, 2015 at 1:45pm
सुन्दर ग़ज़ल
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2015 at 12:16pm

बहुत ही उम्दा गज़ल हुयी है,हार्दिक बधाई! आदरणीय!

Comment by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 9:26am
पात ना आये अगर डाली कहीं  सूखी हुई  हो  , 

फूल डाली पर खिले जैसे  नजारा खास आये |

हार कर  मायूस होना ये कहाँ का  हौसला  है ,

चाह मंजिल की अगर हो  जीत खुद ही पास आये | 

आदरणीय श्याम जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 4, 2015 at 3:53am
प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , सादर।
Comment by umesh katara on March 3, 2015 at 9:19pm

अच्छी प्रस्तुति साहब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 9:07pm

आदरणीय श्याम नरैन वर्मा जी इस सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

मेरे हिसाब से यदि उचित लगे तो कुछ मिसरे ऐसे कहें तो --->

जले गा जब दीप तो होगा उजाला घर नगर में ---->अब जलाओं दीप तो होगा उजाला घर, नगर में (जले में ले मात्रा नहीं गिरा सकते)

राह हो  आसान तो  कोई  गुजर जाये  खुशी से----> राह हो  आसान तो  कोई  निकल जाये खुशी से ( गुजर जाना दुनिया से गुजरने की ओर संकेत कर रहा है या गुजर जाए का अर्थ मौत ध्वनित हो रहा है )

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