मेरी नज़रें तुमको छूतीं
जैसे कोई नन्हा बच्चा
छूता है पानी
रंग रूप से मुग्ध हुआ मन
सोच रहा है कितना अद्भुत
रेशम जैसा तन है
जो तुमको छूकर उड़ती हैं
कितना मादक उन प्रकाश की
बूँदों का यौवन है
रूप नदी में छप छप करते
चंचल मन को सूझ रही है
केवल शैतानी
पोथी पढ़कर सुख की दुख की
धीरे धीरे मन का बच्चा
ज्ञानी हो जाएगा
तन का आधे से भी ज्यादा
हिस्सा होता केवल पानी
तभी जान पाएगा
जीवन मरु में तुम्हें हमेशा
साथ रखेगा जब समझेगा
अपनी नादानी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद Maheshwari Kaneri जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ कल्पना रामानी जी
बहुत बहुत शुक्रिया annapurna bajpai जी
बहुत बहुत धन्यवाद Saurabh Mishra जी
बहुत बहुत धन्यवाद Chhaya Shukla जी
सुंदर गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई
सुंदर गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई
सुंदर नवगीत , बधाई आपको
Uttam
बेहतरीन नवगीत के लिए हार्दिक बधाई धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी !
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