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दोहा........

कददू -पूड़ी ही सदा, शुभ मुहुर्त में भोग।
वर्जित अरहर दाल जब, शुभ विवाह का योग।।1

अन्तर्मन की आंख से, देखो जग व्यवहार ।
धोखा पर धोखा सदा, देता यह संसार ।।2

तन मन में सागर भरा, जीव प्राण आाधार।
सम्यक कश्ती साध कर, राम हुए भव पार ।।3

धर्म कर्म अति मर्म से, विषम समय को साध।
मन की माया जीत लें, मिले प्रेम आगाध ।।4

जैसी जिसकी नियति है, तैसा भाग्य लिलार।
लेकिन आत्मा राम नित, सदा करें उपकार।।5

संशय मन से पार्थ ने, कहा कृष्ण परजीव।
एक जीव सब रूप में, तीर सधे न गॅंडीव।।6

सहसा कृष्णा बोलते, सब में कृष्णा प्राण।
जीव कृष्ण में लुप्त हो, पुनर्जन्म नहि त्राण।।7

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2014 at 7:41pm

आ0 लक्ष्मण सर जी, सादर प्रणाम!   आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2014 at 7:40pm

आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम!   आपके स्नेह और मार्गदर्शन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:17am

दोहों पर हुआ यह अभ्यास उचित लगा. संप्रेषणीयता पर ध्यान देना आवश्यक है.

शुभेच्छाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2014 at 4:10pm

सुन्दर दोहे रचे है | बधाई श्री केवल भाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2014 at 7:10pm

आ0 अरून अनन्त भाई,   भाई जी आपके सुझाव  के अनुसार अपेक्षित तथ्य सही कर दिया है।  आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 27, 2014 at 3:30pm

आदरणीय केवल भाई जी बहुत ही सुन्दर दोहावली रची है आपने दोहों के जरिये सुन्दर सन्देश दिया है आपने इस हेतु बधाई स्वीकारें.

जिसकी जैसी नियति है, तैसा भाग्य लिलार। (जिसकी जैसी है नियति करने से कैसा रहेगा)
लेकिन आत्मा राम नित, सदा करें उपकार।।5

संशय मन से पार्थ कहें, कृष्णा है परजीव।
एक जीव सब रूप में, तीर सधे न गंडीव।।6

इस दोहे के प्रथम चरण में 14 मात्राएँ एवं चतुर्थ चरण में 12 मात्राएँ हैं कृपया देख लें.

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