बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२
रस्ते में जिस्म आया मंजिल तलक न पहुँचे
आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे
मंजिल मिली जिन्हें भी मँझधार में, उन्हीं पर
कसता जहान ताना, साहिल तलक न पहुँचे
जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी
यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे
मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना
पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे
घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर
जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया sarika choudhary जी
बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी
बहुत बहुत धन्यवाद MAHIMA SHREE जी
बहुत बहुत धन्यवाद Saurabh Pandey जी
बहुत बहुत शुक्रिया ram shiromani pathak जी
बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी
बहुत बहुत धन्यवाद Dr.Prachi Singh जी
बहुत बहुत शुक्रिया जितेन्द्र 'गीत' जी
बहुत बहुत शुक्रिया वीनस जी
मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना
पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे
वाह भाई शानदार ग़ज़ल ... ढेरो दाद
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