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क्रांति स्वर मे ललकारें ...

छोड़ विवशता-वचनों को
व्यवस्था धार बदल डालें
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें .
*************************************
छीनकर जो तेरा हिस्सा
बाँट देते है ''अपनों'' में ;
लूटकर सुख तेरा सारा लगाते
''सेंध'' सपनों में ;
तोड़ कर मौन अब अपना
उन्हें जी भरके धिक्कारें
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें .
*************************************
हमीं से मांग कर वोटें
वो सत्तासीन हो जाते;
भूल करके सारे वादे
वो खुद में लीन हो जाते;
चलो मिलकर गिरादें
आज सत्ता मद की दीवारें
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें.
*************************************
डाल कर धर्म-दरारें
गले मिलते हैं सब नेता;
कुटिल चालें हैं कलियुग की
ये न सतयुग,न है त्रेता;
जगा कर आत्म शक्ति को
चलो अब मात दे डालें.
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें.
*************************************

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Comment by आशीष यादव on January 20, 2011 at 10:57am

जगा कर आत्म शक्ति को
चलो अब मात दे डालें.
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें.

बहुत  सुन्दर प्रस्तुति, आत्म शक्ति जगाने का खुबसूरत आह्वाहन

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