For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनुभव

 

 

आज फिर दिन क्यूँ चढ़ा डरा-डरा-सा

ओढ़  कर काला  लिबास  उदासी  का ?

 

घटना ? कैसी घटना ?

कुछ भी तो नहीं घटा

पर लगता  है  ...   अभी-अभी अचानक

आकाश अपनी प्रस्तर सीमायों को तोड़

शीशे-सा  चिटक  गया,

बादल गरजे, बहुत गरजे,

बरस न पाये,

दर्द  उनका .. उनका  रहा ।

सूखी प्यासी धरती, यहाँ-वहाँ फटी,

ज़ख़मों की दरारें .....   दूर-दूर तक

 

घटना ?  .... कैसी घटना ?

 

मेरी ज़िन्दगी के सारे पाप ...  

पापों की प्रतिमाओं की  छायाएँ 

मुझको चारों ओर घूरते फैलते अँधेरे,

सिकुड़-सिकुड़ कर अब

अंतरतम तहों में बसे

तरस रहे

रोशनी की पतली लकीर के लिए

 

अंतरस्थ में है चिलचिला रहा

अकस्मात गंभीर और चंचल

पीड़ा का ज्वलंत कोष

ज़ोर-ज़ोर से  चीखना चाह रहा,

गरज  रहा कब से बादल  की  तरह,

बरस नहीं पा रहा

 

घुटन यह कोई नई नहीं,

बस कोई नई घटना बनी

भेस बदल कर दिन-प्रतिदिन

चली आती है मेरे अत्यंत समीप ...

मेले में अबोध खोए बालक की तरह

अनपहचाने  नए खतरों से भयभीत

पुकारता हूँ, पुकारता हूँ ...

" माँ, माँ, ... माँ कहाँ  हो  तुम ? "

 

मेरे रक्तप्लावित स्वर

बेचैन, सहमे-सहमे, मौन,

घटा  तो   कुछ  भी  नहीं,

बस चिटक गया मेरा आकाश

काँच  के  सपने-सा

                           

खोज  रहा  था   मित्र  का  हाथ,

और समेटते-समेटते

अनुभव अनन्त आत्मीय

एक  चोट  और  सह  न  सका

 

 ----------

-  विजय निकोर

२९ मार्च,२०१२

(मौलिक व अप्रकाशित)                                                                    

Views: 794

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 27, 2013 at 11:04am

आदरणीया प्रियंका जी:

 

आपकी सराहना मन को आनंदानुभुति से स्पंदित कर गई।

हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

 


 

Comment by vijay nikore on September 27, 2013 at 11:01am

आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक है मेरे लिए ।

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्षमण जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

 

Comment by vijay nikore on September 27, 2013 at 10:53am

आदरणीय बृजेश जी:

 

कविता की सराहना के लिए आभार ।आपका सुझाव सही है, अच्छा लगा। धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 27, 2013 at 10:48am

आदरणीया वंदना जी:

 

आपके उत्साह वर्धन से उक्त रचना को सार्थकता
प्राप्त हुई
, हार्दिक धन्यवाद।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 26, 2013 at 10:56am

आदरणीया विजयाश्री जी:

 

कविता की सराहना से आपने मेरा मनोबल बढ़ाया है, आपका हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 26, 2013 at 10:53am

आदरणीय गिरिराज जी:

 

कविता के भाव आपको पसन्द आए, आपका हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 26, 2013 at 10:48am

आदरणीया मीना जी:

 

कविता की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

 

सा्दर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 24, 2013 at 7:59am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Priyanka singh on September 23, 2013 at 9:20pm

घुटन यह कोई नई नहीं,

बस कोई नई घटना बनी

भेस बदल कर दिन-प्रतिदिन

चली आती है मेरे अत्यंत समीप ...

मेले में अबोध खोए बालक की तरह

अनपहचाने  नए खतरों से भयभीत

पुकारता हूँ, पुकारता हूँ ...

" माँ, माँ, ... माँ कहाँ  हो  तुम ? "

मैंने महसूस किया इसे पढ़ ...उस घुटन को जो आप लिखते समय महसूस कर रहे होंगे ....वेदना स्वरों का सुन्दर प्रस्तुतीकरण .....बहुत सुन्दर रचना बधाई सर 

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2013 at 4:34pm

मेरे रक्तप्लावित स्वर

बेचैन, सहमे-सहमे, मौन,

घटा  तो   कुछ  भी  नहीं,

बस चिटक गया मेरा आकाश

काँच  के  सपने-सा--------------अंतस में छिपे गहरे वेदना स्वरों का सुन्दर प्रस्तुतीकरण लगता है आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

इसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
yesterday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service