For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चिंगारियाँ

 

बूंद-बूंद टपकती

घबराती  बेचैनी,

बेचैन ख़यालों के भीतरी अहाते --

जहाँ कहीं से आती थी याद तुम्हारी

बंद कर दिए थे उन कमरों के दरवाज़े,

पर समय की धारा-गति कुछ ऐसी

दरवाज़े यह समाप्त नहीं होते,

गहरे में उतर-उतर आती है अकुलाहट

कई दरवाज़ों के पीछे से आती है जब

सुनसान आवाज़, तुम्हारी करुण पुकार,

तुम थी नहीं वहाँ, हाँ मैं था

और था मेरा कांपता आसमान

टूटते तारे-सा गिरने का जिसका भान

हुआ था तुमको, मुझको भी, उस शाम।

 

थी घबराई कोई शून्याकृति कहीं --

या थीं वह तुम्हारी बेचैन आँखें

इस कमरे में उस कमरे में विस्मित-सी,

और मैं इन कमरों को बंद कर न सका।

बुझती रातों में इन खुले हुए दरवाज़ों से,

तिमिर-पथों से आती शिशु-रुदन-सी

सिसकियाँ

दुख की कथाएँ

घूमती हैं हज़ारों चिनगारियों-सी

अब तुम्हारे अभाव का ताप बनी।

चुभती जलती चिनगारियों से घायल

मेरी रातें सतहों की परतों में ढूँढती हैं

तुम्हारी जायज़ शिकायतें

तुम्हारे दुखों के दाग।

-------  

-- विजय निकोर

  (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 27, 2013 at 11:08am

आदरणीया प्रियंका जी:

 

//बहुत सुन्दर शब्दों से पिरोया आपने एहसासों को//

 

यह कह कर आपने मेरा मनोबल बढ़ाया है।

आपका हार्दिक धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Priyanka singh on September 23, 2013 at 9:31pm

बहुत सुन्दर शब्दों से पिरोया आपने एहसासों को .....बहुत खूब ....बधाई सर 

Comment by vijay nikore on September 12, 2013 at 9:37am

आदरणीया वंदना जी:

 

//आपकी छन्दमुक्त रचना में पिरोई प्रबल भावनाओं की लड़ी चित्ताकर्षक है।
आपको बहुत बधाई इस सफल सम्प्रेषणीय रचना के लिए।//

इस सराहना से रचना को सारगर्भित संज्ञा देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया।

 

सादर,

वि्जय निकोर

 

Comment by vijay nikore on September 12, 2013 at 9:30am

आदरणीय अरून शर्मा जी:

 

रचना की सराहना से प्रोत्साहन देने के लिए हार्दिक अभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 12, 2013 at 9:27am

 

आदरणीया मीना पाठक जी:

 

आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक और प्रेरक है मेरे लिए। हार्दिक धन्यवाद।

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by vijay nikore on September 11, 2013 at 7:52pm

कविता में निहित एहसासों की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ,आदरणीया प्रियन्का जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 11, 2013 at 7:50pm

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी:

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 11, 2013 at 7:44pm

आपने रचना को सराहा, मेरा मनोबल बढ़ाया, आदरणीय केवल प्रसाद जी। धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 11, 2013 at 7:42pm

आदरणीय जितेन्द्र जी:

 

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on September 10, 2013 at 8:09pm

//भावनाओं की सरिता बहा दी अपने //बहुत ही सुंदर रचना//

रचना में मेरी भावनाओं के अनुमोदन के लिए धन्यवाद, आदरणीय राम जी।

 

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, दूसरी प्रस्तुति भी अति उत्तम हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहावली रची है। हार्दिक बधाई।"
40 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अच्छे दोहे हुए। कुछ शब्द सामान्य प्रचलन के नहीं हैं जैसे रूख, पटभेड़ और पिलखन। अगर इनके अर्थ भी साथ…"
40 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अच्छी ग़ज़ल हुई, विशेषकर चौथा शेर बहुत पैना है।"
44 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"यह टिप्पणी गलत जगह पोस्ट हो गई।"
45 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. प्राची बहन , सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति, स्नेह व मनोहारी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत…"
45 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अच्छी ग़ज़ल हुई। विशेषकर चौथा शेर बहुत पैना है।"
47 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आपने कविता में संदर्भ तो महत्वपूर्ण उठाए हैं, उस दृष्टि से कविता प्रशंसनीय अवश्य है लेकिन कविता ऐसी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" पर्यावरण की इस प्रकट विभीषिका के रूप और मनुष्यों की स्वार्थ परक नजरंदाजी पर बहुत महीन अशआर…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service