For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेमेल बंधन ..................डॉ० प्राची

अविश्वास !

प्रश्नचिन्ह !

उपेक्षा ! तिरस्कार !

के अनथक सिलसिले में घुटता..

बारूद भरी बन्दूक की

दिल दहलाती दहशत में साँसे गिनता..

पारा फाँकने की कसमसाहट में

ज़िंदगी से रिहाई की भीख माँगता..

निशदिन जलता..

अग्निपरीक्षा में,

पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !

इसमें झुलस

बची है केवल राख !

....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !

और राख की नीँव पर

कतरा-कतरा ढहता  

राख के घरौंदे सा

बेमेल बंधन ! 

Views: 925

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2013 at 2:40pm

आदरणीय गणेश जी 

आपने बहुत सटीक प्रतिक्रया दी है इस अभिव्यक्ति पर.. 

ऐसी ही तपते अंगारों सी भावदशा को शब्द देने का प्रयत्न किया गया है इसमें.

हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद !

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2013 at 2:36pm

प्रिय शिप्रा दीदी,

आपने मेरे ब्लॉग को देखा, मेरी रचनाओं को पढ़ा.. मेरे लिखे को जैसे सार्थकता मिल गयी.

अपने आप को अभिव्यक्त करने का लेखन से बढ़िया माध्यम कोइ और नहीं.. मैं खुश हूँ कि आपको मेरा लिखा पसंद आया.

//proud that you are doing it so well !//.. आपके ये भाव - अर्थपूर्ण शब्द मेरा हौसला हैं और पारितोषिक से भी बढ़ कर हैं.

ढेर सारा प्यार 

प्राची 

Comment by Shipra on October 7, 2013 at 10:15am

Prachi....I am so happy, so proud ! Happy that you have finally found a means of expressing yourself......proud that you are doing it so well !

 

Love you, Shipra


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 18, 2013 at 6:12pm

आदरणीय लक्ष्मण जी 

 रचना पर अनुमोदन और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:13am

शब्द दर शब्द, भावों का बवंडर, जैसे गर्म रेत पर रखा हुआ पैर, छन से जलन के साथ पाँव उठा लेना, कुछ इस तरह की अभिव्यक्ति हुई है आदरणीया प्राची जी, बधाई स्वीकार करें | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 9:54am

आदरणीया राजेश कुमारी जी 

प्रस्तुत रचना के मर्म पर आपका अनुमोदन मिलना लेखन कर्म के लिए वास्तव में आश्वस्ति का कारण है आदरणीया..

सादर धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2013 at 11:52pm

बेमेल बंधन को ढोते रहना अपने अस्तित्व को राख कर देना मर्यादाओं के आवरण के नीचे ये असहनीय खेल सदियों से चलता रहा है रचना का मर्म बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 2:19pm

आदरणीय बृजेश जी ..

//स्वर्णिम अस्तित्व की राख..//

अर्थात : कोई इंसान अपनी प्रतिभा के कारण ऐश्वर्य के चरम पर हो..और उसका अस्तित्व ही मिट जाए 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 2:17pm

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी, आदरणीय सौरभ जी , आ० जितेन्द्र जी, आ० मीना जी , आ० विजय जी, प्रिय गीतिका जी , आ० अभिनव अरुण जी, आ० रविकर जी , आ० बृजेश जी 

इस अभिव्यक्ति के भावों को समझने और तदनुरूप लेखन का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन करने के लिए आप सब की आभारी हूँ..

हार्दिक धन्यवाद 

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 12:14pm

आदरणीय प्राची जी, बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

इस पंक्ति पर आपका मार्गदर्शन अपेक्षित है।

//स्वर्णिम अस्तित्व की राख//?

मेरी समझ अनुसार, प्रवाह के हिसाब से पंक्तियों के संयोजन को एकबार फिर देखने की आवश्यकता है। सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service