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लघुकथा: काफिला -- संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा:

काफिला

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कें... कें... कें...

मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.

हा...हा...हा...

अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी वर्दी में एक पुलिस सिपाही दिखाते ही दोनों सहम गये. मैंने सिपाही की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो वह चिल्ला रहा था 'स्साले... मादर... सड़क पर ऐसे पड़े रहते हैं मानों इनके बाप की जागीर है. ... पर दो लात जमाव तभी हटते हैं.'

'अरे भाई! नाराज़ क्यों होते हो? सड़क पर न रहें तो जाएँ कहाँ? इनका घर-द्वार तो हैं नहीं.' मैंने कहा.

'भाड़ में जाएँ. इनके बाप ने मुझसे पूछ कर तो इन्हें पैदा नहीं किया था..... खुद तो मरेंगे ही मेरी भी नौकरी भी चाट लेंगे. इधर ये सूअर हटते नहीं उधर उन कुत्तों को एक पल का धैर्य नहीं है.'

'अरे, कहे गरम होते हो? कौन छीनेगा तुम्हारी नौकरी? कौन्हाई जिसे गरिया भी रहे हो उससे और डर भी रहे हो.' 

'और कौन? अपने मंत्री जी और उनका बिटुआ.'

तभी लाल बत्तियों से सजी गाड़ियों का लम्बा काफिला सनसनाता हुआ निकलने लगा. लोक और लोकतंत्र की तरह भिखारी और कुत्ता सहमकर एक तरफ दुबक गये....

**********************************************

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Comment by Bhasker Agrawal on December 22, 2010 at 8:56am

अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा..

लोक और लोकतंत्र की तरह भिखारी और कुत्ता सहमकर एक तरफ दुबक गये..

कमाल की जागरूकता है आपकी..कैसी कैसी  बातें पकड़ लेते हैं ..बहुत खूब
Comment by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 6:22pm

bahut-bahut dhanyavad.

Comment by Admin on December 19, 2010 at 6:13pm

आचार्य जी ! आप के कहे अनुसार आपकी पोस्ट को एडिट कर "तभी लाल बत्तियों से सजी गाड़ियों का लम्बा काफिला सनसनाता हुआ निकलने लगा. लोक और लोकतंत्र की तरह भिखारी और कुत्ता सहमकर एक तरफ दुबक गये." जोड़ दिया गया है |

Comment by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 6:03pm

धन्यवाद बागी जी. खेद है कि कॉपी-पेस्ट करते समय अंतिम वाक्य छूट गया. कृपया इसे जोड़ दें ताकि शेष पाठक पूरी रचना पेह सकें.

तभी लाल बत्तियों से सजी गाड़ियों का लम्बा काफिला सनसनाता हुआ निकलने लगा. लोक और लोकतंत्र की तरह भिखारी और कुत्ता सहमकर एक तरफ दुबक गये.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 19, 2010 at 11:00am

सरल शब्दों मे बड़ी बात, वाह आचार्य जी , यही खूबसूरती आपके लेखन को बेहतरीन बनाता है, बहुत सुंदर और संदेशपरक लघु कथा है यह |किन्तु शीर्षक काफिला कुछ समझ नहीं आया |

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