For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार और मनुहार - (रवि प्रकाश)

अधिकार भरी मादकता से,दृष्टिपात हुआ होगा;
मन की अविचल जलती लौ पर,मृदु आघात हुआ होगा।


साँसों की समरसता में भी,आह कहीं फूटी होगी;
सूरज के सब संतापों से,चन्द्रकिरण छूटी होगी।
विभावरी ने आते-जाते,कोई बात सुनी होगी;
सपनों ने तंतुवाय हो कर,नूतन सेज बुनी होगी।
कितने पल थम जाते होंगे,बंसीवट की छाँव तले;
मौन महावर पिसता होगा,आकुलता के पाँव तले।


सन्ध्या का दीप कहीं बढ़ कर,भोरों तक आया होगा;
मस्तक का चंदन अनायास,अलकों तक छाया होगा।


पलकों से उर के विप्लव तक,कितने द्वार खुले होंगे;
धड़कन के परिमित घेरे में,हाहाकार घुले होंगे।
कोई चरण झिझकता होगा,पनघट की संकुलता में;
आँचल अस्थिर होता होगा,चलने की व्याकुलता में।
कितनी घड़ियाँ बीती होंगी,संदेहों के भारों में;
आशाओं की दोला पर भी,आशंकित उद्गारों में।
वर्तमान की गतिमयता में,स्नेहिल पाश कहाँ खोया;
सहसा धरती हुई निमज्जित,फिर आकाश कहाँ खोया।
मैंने पल-पल जीवन जी कर,उसमें प्यार बसाना चाहा;
तुमने साधन बना प्रेम को,जीवन-पर्व मनाना चाहा।
जिसका तुमने मर्दन चाहा,मैंने मन में भर डाला;
पीड़ा को तुमने रुदन किया,मैंने कविता कर डाला।
या तो मेरे शब्द छीन लो,या छन्दों में ढल जाओ;
अंधकार के गर्व-शिखर पर,कंदीलों से जल जाओ।
मानभवन की राहों में नित,आना-जाना क्या होगा;
मनुहारों में अद्भुत जीवन,व्यर्थ गँवाना क्या होगा॥

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on July 24, 2013 at 7:09pm
आप जैसे गुणी जनों के सान्निध्य में अभी काफी कुछ सीखना हैः
धन्यवाद।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 12:04pm

मैंने पल-पल जीवन जी कर,उसमें प्यार बसाना चाहा;
तुमने साधन बना प्रेम को,जीवन-पर्व मनाना चाहा।...बहुत सुन्दर 

भाव, शब्द और प्रवाह से यह अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है.. फिर भी इसमें कविता के लिहाज़ से एक सुनियोजित विन्यास नहीं है,जो समय के साथ अभ्यास करते करते व अन्य रचनाकारों की अभिव्यक्तियाँ पढते पढते सतह ही रचनाकर्म में आने लगता है.

इस सुन्दर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:50am

रविप्रकाशजी,  आपकी इस रचना से एक बात तो एक्दम से स्पष्ट है कि आपकी रचना प्रक्रिया मात्रिकता का सार्थक निर्वहन कर सकती है. इसके अलावे मात्रिक/ गेय कविताओं  का अपना एक विन्यास होता है जिसे रचना का शरीर कह सकते हैं.  आप इस ओर भी गंभीरता से सोचे. रचना के लिए शुभकामनाएँ

Comment by Ravi Prakash on July 23, 2013 at 9:19pm
Thank you annapurna ji..
Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 6:43pm

bahut hi badhiya rachna , shabd shabd bol raha hai . meri badhai swikaren .

Comment by Ravi Prakash on July 23, 2013 at 5:07pm
thanks Shyam Ji
Comment by Shyam Narain Verma on July 23, 2013 at 3:18pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service