For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गहन तमसा में खिली एक ज्योत्सना है

मधु गीति सं. १५०२ दि. ४ नवम्बर, २०१०

गहन तमसा में खिली एक ज्योत्सना है, ज्योति की वह क्षीण रेखा उन्मना है;
नहीं अपना नजर उसको कोई आता, जोड़ पाती ना प्रकाशों से है वो नाता.

प्रकाशों की नाभि से वह निकल आयी, स्रोत के उस केंद्र से ना जुड़ है पायी;
खोजती रहती वही निज स्रोत सत्ता, दीप लौ बन खोजती है बृहत सत्ता.
अंधेरों से भिड़ प्रकाशों को संजोये, वाती जब तब स्वयं भी है झुलस जाए;
घृत प्रचुर दीपक की वाती जब न पाये, उर दिये का भी कभी वाती जलाये.

बड़े सामंजस्य से है वाती स्वयं जलती, निशा की नीरव विवशता प्रचुर हरती;
दिखा मानव को दिये कुछ और देती, तपन अपनी दे दिये बहु जला देती.
रहे प्रज्वलित ज्योति यदि एक भी दिये की, प्रकाशित वह ज्योति रखती हर हिये की;
हर हिया दीपक अनेकों जलाता है, हर दिया 'मधु' हिये कितने तरजता है.

Views: 372

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shrddha on November 17, 2010 at 5:46pm
Aapki kavita geet bahut achcha laga
Comment by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 8, 2010 at 10:12am
प्रिय गणेश जी, नमस्कार !

व्याकरण की द्रष्टि से शायद जो आप इंगित कर रहे हैं वह उचित लगता है पर यहाँ पर भाव व तुक दोनों इन्हीं शब्द रूपों में उचित लग रहे हैं. फिर भी ऐसा कर के देख लेंगे. जो शब्द उचित भाव अभिव्यक्ति करें उन्हें बदला
जा सकता है.

मैं भी विशेष साहित्यिक व्यक्ति नहीं हूँ..हम दोनों मूलतः अभियंता हैं. यह भाव तो परम पुरुष ही दिए जा रहे हैं.
हम मात्र लिखे जा रहे हैं. कभी २ लगता है शब्द बदल कर हम ठीक नहीं कर रहे ..जो मूल शब्द अपने आप अन्तः करण से आ रहे हैं वे ही उनके कृपा प्रसाद हैं. फिर भी मैं पूरी तरह खुले हृदय से सदैव परिवर्तन के लिए प्रस्तुत रहता हूँ. बस, थोडा अंदर से अनुमोदन हो जाए तो अत्त्युत्तम. उनके व उनके भक्त जनों के इशारे भी एक ही हैं.

आप के साथ कल से अच्छा समय बीता..रविवार को छुट्टी थी तो रात्रि जागरण कर लिया. आज एक कवि सम्मलेन में भाग भी लिया यहाँ. अब तीन दिन प्रातः से कार्य पर जाना है. आप से बात आराम से शायद हमारी कल सुबह फोन से होगी. दिन में मैं आई-फोन पर ही रहूँगा ..

अब हम मिल गए हैं तो मिले ही रहेंगे. मैंने यांत्रिक अभियांत्रिकी १९७० में NIT/ REC दुर्गापुर, प. बंगाल से की है. प्रायः बिहार व पटना आना जाना रहा है. आध्यात्मिक कार्य क्रमों के लिए भी मैं प्रायः बिहार व बंगाल जाता रहा हूँ. पूरी बात फोन पर.

अन्य दोनों कविताओं को भी पसंद करने के लिए आपको साधुवाद. आध्यात्मिक कवितायेँ वैसी ही मानसाध्यात्मिक तरंग के 'मधु' सूजन ही पसंद कर पाते हैं और उनको साधुवाद भी कैसे दिया जा सकता है.
वे तो सुहृदय हो कर हमारे ही हृदय वासी हैं- दूर कहाँ रहते हैं.

अनन्य स्नेह, आदर व शुभ कामनाओं सहित

गोपाल

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 8, 2010 at 8:49am
आदरणीय गोपाल बघेल जी, सुंदर काव्य कृति है, बुराई पर अच्छाई की जीत की तरफ इशारा करती यह कविता सुंदर बन पड़ी है, एक बार ज़रा प्रकाशो और अंधेरों की जगह प्रकाश और अंधेरे को रखकर देखिये की कविता कैसी लगती है | एक बेहतरीन अभिव्यक्ति हेतु बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
21 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service